भारत जोड़ो यात्रा के सौ दिन होने पर दौसा में
@RahulGandhi
से मिलकर मैंने भी अपना समैक्य भाव ज़ाहिर किया। चलते हुए बातें हुई। यात्रा की विशेषता है कि वह सामाजिक-सांस्कृतिक तेवर लिए हुए है; हिंसा और सांप्रदायिकता से देश में आई टूटन के प्रति लोगों को जागरूक होने का आह्वान करती है।
यह है साहस की पत्रकारिता। संदीप चौधरी
@sandeep_news24
जैसे लोग हमारे मीडिया में कितने हैं जो भीड़ के मानस की परवाह न कर हल्ले का दूसरा पहलू भी देख पाते हैं?
एक पत्रकार से निपटने के लिए पूरा चैनल ख़रीद डाला। जब संस्थाएँ ही ढह रही हों — ढहाई जा रही हों — एक चैनल के ढहने-ढहाने पर क्या रोना।
#NDTV
#RavishKumar
#adani
पीएम को वेश पसंद है! डेनमार्क में रहनुमाई। विकासशील देश का दर्जा तक खो चुके भारत के प्रधानमंत्री ने पहले ही दिन दो बार वेशभूषा बदली, जबकि विकसित देश की मेजबान प्रधानमंत्री सुबह से शाम एक ही पहनावे में रहीं। फोटो साभार
@ANI
(जारी ब्योरा 3 मई, पहला फोटो 03:40pm; दूसरा 08:26pm)
क्या कहा रजत जी, कलाकार ने सुंदर चित्रण किया है? इसमें कला कहाँ है? किसी भक्त ने बस मोदी को बड़ा और राम को छोटा किया है। राममंदिर अभियान शुरू से राजनीतिक था। भूमि-पूजा के साथ वह व्यक्ति-पूजा में तब्दील हो गया है।
रवीश का यह वीडियो मीडिया के इतिहास में दर्ज होगा।… यूट्यूब पर रवीश कुमार ऑफ़िशियल: “जिस दौर में जज को ही डर लगता हो, पत्रकार की क्या बिसात। मगर एक डरा हुआ पत्रकार मरा हुआ नागरिक पैदा करता है। .. मेरे रास्ते निश्चित नहीं, पर हौसला निश्चित है।”
via
@YouTube
कमाल ख़ान पर कल हज़ारों ट्वीट और फ़ेसबुक नमन सामने आए। एनडीटीवी ने स्वाभाविक ही उन्हें ख़ूब याद किया, रवीश का तो शो कमाल पर केंद्रित था। मगर एक संजीदा और सरोकारी पत्रकार की मौजूदगी से इस तरह वंचित होने की तल्ख़ी को क्या अन्य चैनलों ने उल्लेख भर भी कवर किया? देखा हो तो बताइएगा।
मित्रो, मुझे कोरोना हो गया था। दो दिन बाद प्रेमाजी को भी। कई बरसों पुरानी व्याधियों के चलते पंद्रह दिन अस्पताल में काटे। अब हम ठीक हैं। हालाँकि मेरी RT-PCR फिर पॉज़िटिव आ गई है। पर E-gene 33, N-gene 32 आया तो रोग लगभग कट जाने के भरोसे में अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। लगे रहेंगे।
मोदी के रेवड़ी ज्ञान की ऐंकर ने व्याख्या की तो तमिलनाडु के वित्तमंत्री ने कहा — संवैधानिक आधार क्या है इस कथन का? क्या पीएम विशेषज्ञ हैं? अर्थशास्त्र में दो बार पीएच-डी की है? नोबेल जीत कर आए हैं? अर्थव्यवस्था को सुधार सके हैं? रोज़गार दिए हैं? कुछ तो ऐसा हो कि हम उनकी बात सुनें!
चार दिन पहले
@abhisar_sharma
ने कहा था कि महामारी में भी हिंदू-मुसलिम करने में जुटे कुछ टीवी चैनल इसमें पाकिस्तान के लिंक खोज रहे हैं। और आज
@AMISHDEVGAN
को “सबसे बड़ी ख़बर” मिल गई कि कोरोना वायरस के कुछ तार “सीधे पाकिस्तान से” जा जुड़े हैं! तो कल से फिर भारत-पाक?
कुछ पत्रकार लिख रहे हैं कि यह राजनीति है। मगर इस राजनीति में बुरा क्या है? जिस राजनीति में वेदना, सहानुभूति और प्रतिरोध की ताक़त न हो वह कैसी राजनीति? अमीरों के कंधे पर हाथ रखना, उनके सामने हाथ बांधकर खड़े रहना, आततायी की जयजयकार करना – उस राजनीति से सदाशयता की राजनीति लाख अच्छी।
ट्रेन टिकट बुक करवाते वक़्त वयोवृद्ध नागरिकों को भाड़े में कुछ रियायत मिला करती थी। उसे बंद क्यों कर दिया गया है? मैं तो अपने आप को वृद्ध नहीं मानता, न रियायत दरकार है; पर अपने बुज़ुर्गों का ख़याल सारी दुनिया रखती है — हमारी सरकार को क्या उलटी सूझी?
@AshwiniVaishnaw
@RailMinIndia
सूरत से इलाहाबाद। 1258 किलोमीटर। सुनकर कलेजा मुँह को आता है। और ऊपर में इन्हीं नागरिकों की क़ीमत पर विमान आकाश में अठखेलियाँ कर रहे हैं, हैलिकॉप्टर फूल बरसा रहे हैं। कैसे मखौल भरे दौर में जी (?) रहे हैं लोग!
मुरारी बापू: “मैं कोई शेर सुनाऊँ या गजल गाऊँ और उर्दू शब्द आएँ तो मुझ पर टूट पड़ते हैं। एक हिन्दुत्व के बड़े पुरुष हैं, मस्जिद में गए, इमाम से बातें कीं, मदरसे में भी गए। कुछ टीका उन पर भी करो? मुरारी बापू ब��लते हैं तो लाठी भाँजते हो। अब कोई नहीं बोलता, कहां गए वे सब? कहाँ गए …
क्या हमारे मीडिया ने अपने बंदों का विरोध प्रदर्शन यहाँ दिखाया, जो किसान आंदोलन के समर्थन में अमरीका की सड़कों पर उतरे? इसके लिए तो गेट-क्रैश जैसे दुस्साहस की ज़रूरत भी न थी!
निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज का मामला सामने आने के बाद ज़ी न्यूज और सुधीर चौधरी ने न सिर्फ उस पर लगातार शो किया बल्कि उसकी आड़ में पूरे मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ा किया। अब खुद उनका दफ्तर कोरोना का हॉटस्पॉट बनकर उभरा है तो उनका रवैया कुछ और है।
दिल्ली पत्रकारों का एक सम्मान समारोह चर्चा में है। इतनी लम्बी सूची है पुरस्कारों की कि गिनते हुए थक जाएँ। मेरे मित्र हरिवंश और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कितने धैर्य से उन्हें बाँटा होगा।
बैस्ट हिंदी ऐंकर का सम्मान जानते हैं किसे मिला है? अमीश देवगन को। /1
झूठे प्रचार पर कितने दिन टिका जा सकता है? रेलमंत्री का “कवच” डेमो देखें। ख़ुद पेश करते हुए कह रहे थे कि यूरोप के सुरक्षा सिस्टम से “कवच” सिस्टम आगे है; ट्रेनें टकरा नहीं सकतीं, 400 मीटर पहले अपनेआप (“automatic”) थम जाएँगी। … कब तक बुद्धू बनाएँगे?
निर्दय योग! ऊँट के पाँव बांधकर, क़ालीन के माफ़िक़ ज़मीन पर बिछाकर उसकी पीठ पर योगासन करना योग नहीं है, क्रूरता भरा अत्याचार है। साधना और आत्मानुशासन वाले योग को सरकारी आदेशों से सड़क-मैदान की कसरत-पीटी में बदल देना इस दौर की एक और नायाब देन समझिए। फ़ोटो सौजन्य
@manaman_chhina
हमला उर्दू पर नहीं, मुसलमानों पर है। लेकिन मूर्खों को पता नहीं कि उर्दू हिंदुओं की भी भाषा है और हिंदी मुसलमानों की भी। फ़िराक़ गोरखपुरी या शीन काफ़ निज़ाम उर्दू के नामी शायर हैं, राही मासूम रज़ा या अब्दुल बिस्मिल्लाह हिंदी के प्रसिद्ध लेखक। हिंदू-हिंदी शब्द भी फ़ारसी के हैं।
मैं इस हिंदू बहन के साथ हूँ, जिसने बेख़ौफ़ हो कहा: “रोज़ा खोलने के वक़्त डीजे बजा रहे हो, मुसलमानों को काटेंगे बोलकर बार-बार उकसा रहे हो, हथियार बजरंग दल वालों के हाथ में — जब इन (मुसलमानों) पर वार होगा तो कुछ तो अपना बचाव ये भी करेंगे? … भाईचारा खराब करने वाली गंदी राजनीति है।”
कोरोना ढाई लाख के पार। चीन देश के भीतर घुस आया। भुखमरी-बेरोज़गारी ने रीढ़ तोड़ डाली। मगर गृहमंत्री बिहार चुनाव की गोटियाँ देख रहे हैं। गुजरात में विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त चल रही है। रक्षामंत्री ग़ालिब के नाम पार मज़ाज के शेर सुना रहे हैं। और प्रधान ने मुँह पर पट्टी बांध ली है।
मीडिया से डरकर दूर रहने वाले नेताओं को
@CHARANJITCHANNI
से सीखना चाहिए। गोद बैठकर आए रोज़ किसी और का लिखा आलेख पढ़ने वाले को भी इंटरव्यू दिया। न सवाल टाला, न खीजे। हँसकर आईना दिखा दिया।
इमरजेंसी में ज्यादतियाँ हुईं, इंदिरा गांधी ने ने माफी माँगी। आज मीडिया सरकार के काबू में है, बोलने वाले जेल में, पत्रकारों पर राजद्रोह के मुकदमे, नेतृत्व एकछत्र, शासन पंगु, माली हालत चौपट, सरहद पर मार खाकर मातृभूमि खो चुके, मगर बचने को 45 साल पुरानी इमरजेंसी में आड़ खोज रहे हैं??
मैं हैरान हूँ. तब्लीगी जमात ने कितना नुक़सान कर दिया. मुल्क के बाहर से लोग आए. अपने साथ कोरोना लाए. उन्होंने इसे छिपाया. ना जाने कितनों तक पहुँचाया. कई लोगों को मौत दे दी. इतनी बड़ी लापरवाही. आख़िर क्यों?
मुसोलिनी को लगता था वे इटली पर हमेशा राज करेंगे। ऐसे सपने हमेशा सपने रह जाते हैं। मुसोलिनी ने जो तबाही मचाई उससे उबरने में इटली को कई दशक लग गए। मोदी और उनकी पार्टी जो विध्वंस कर रही है, उससे उबरने में भारत को उससे भी ज्यादा वक्त लग सकता है।
@Ram_Guha
ये है उनकी देशभक्ति: सावरकर की छाया में खड़े होकर जनरल बक्षी गांधी और अहिंसा ही नहीं, अंगरेज़ों की लाठी खाने वाले सेनानियों के बारे में कह रहे हैं कि “लाठी तो मेरी भैंस ने भी खाई थी”! नाशुकरे लोग।
कांग्रेस की मुखरता पिछले दिनों में बढ़ी है।
@Pawankhera
की प्रेसवार्ता,
@Jairam_Ramesh
की नड्डा को पाती,
@ashokgehlot51
की संयत मगर तल्ख़ मुद्रा, ईडी से दो-चार होने के बाद
@RahulGandhi
की सक्रियता पार्टी को मायूसी से बाहर ला रहे हैं। गोदी-ऐंकरों की माफ़ी-मुद्रा अनायास नहीं। (1)
गीतांजलि श्री देश के लिए पहला बुकर जीतकर लाईं। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति किसी ने बधाई नहीं दी। जेएनयू का प्रेत आड़े आ गया। अब “रेत समाधि” में देवी-देवताओं का अपमान ढूँढ़ा गया है। हम कितने अशिक्षित दौर में जी रहे हैं। साहित्य को बयानबाज़ी समझने लगते हैं। गीतांजलि नूपुर नहीं हैं।
आम आदमी पार्टी की तरफ़ से क्या कोई वक्तव्य आया है कि उनके मुख्यमंत्री को महात्मा गांधी की की छाया से परहेज़ क्यों है? उनके सर पर ज़रूर बाबा साहेब का साया रहे, और भगत सिंह (‘पीली’ पगड़ी में हों चाहे हैट में) और लाला लाजपत राय का भी। मगर गांधीजी से दूरी? यह तो संघ का काम रहा है!
जब ऐंकर को भी ख़बर में मज़ा आ जाए!
कोई दो सौ की गति पर कार चलाता पकड़ा गया, जुर्माना नहीं भरा, अदालत में बोला मैं सब काम तेज़ी से करता हूँ तो जज साहब ने फ़ैसला सुनाते हुए फ़रमाया कि देखते हैं छह महीने की जेल की सज़ा कितनी तेज़ी से काटकर आते हो!
आज
@ravishndtv
के प्राइमटाइम ने प्रधानमंत्री के भाषण की हवा निकाल दी। नोटबंदी की तरह तालाबंदी (लॉकडाउन) ने गरीब मज़दूरों को दर-ब-दर कर दिया। सुविचारित नहीं, बल्कि चौंकाने वाला, फिर बर्बाद करने वाला फ़ैसला था। अब इसका ठीकरा विपक्ष के सर फोड़ रहे हैं। … न देखा हो तो ज़रूर देखें।
तबलीग़ी जमात को लेकर इतनी झूठी ख़बरें शाया हुई हैं कि उनका खंडन कहीं पुलिस ने किया है, कहीं ज़िला प्रशासन ने और कहीं राज्य सरकार ने। तबलीग़ ने गुनाह किया, शासन ने लापरवाही बरती और मौलाना साद ने सरासर बेवक़ूफ़ी। पर जो नहीं हुआ मीडिया उसे क्यों गढ़ और मढ़ रहा है? वह भी बेख़ौफ होकर?
लद्दाख के भाजपा सांसद ने माना: चीन ने भारत के अनेक इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया है। अपने बहुत सारे चरागाह हम खो चुके हैं; हमारे घुमंतू नागरिक गर्मियों में अब अपनी भूमि पर नहीं जा सकते। और तो और, पीएलए (चीनी सेना) वहाँ अब हमारे सीमांत सैनिकों तक को नहीं फटकने देती।
जब एनडीटीवी हिल गया, विनोद दुआ की बरसी आई है। उनका परिवार डेरा इस्माइल खान से आया था। दिल्ली की शरणार्थी बस्ती से पत्रकारिता की बुलंदी छूने का उनका सफर अपने आप में एक दास्तान था। मेरे बरसों उनसे साथ रहा। उन जैसे बेलौस, निडर और दो टूक टीवी वाले बमुश्किल मुट्ठी भर मिले होंगे।
सावरकर ने अंगरेज़ों से रहम की भीख माँगी।
@manojmuntashir
का कहना है कि सावरकर ने कभी माफ़ी नहीं माँगी। उनका माफ़ीनामा “एक सामान्य-सी याचिका” थी। दरअसल सावरकर के सारे माफ़ीनामे रेकार्ड पर हैं। फिर भी एक अटूट सच के सामने सौ झूठ बार-बार बोले और छापे जा रहे हैं। यही है #नयाइंडिया।
चार दिन में गुटका बेचने वाले से तस्दीक़ करवाने की नौबत आ गई? जब मंत्रियों के प्रलाप फ़ेल हो गए, सेना में ठेके के रोज़गार वाले पेचीदा मुद्दे पर इन भोले ग़रीबों को मोहरा क्यों बना रहे हैं?
“No outsider was inside
#Indian
territory in
#Ladakh
nor had any border post of the Indian Army captured by outside forces.” Chinese media has translated the speech by
#Indian
Prime Minister Narendra Modi on an all- party meet called by him on Friday.
#ChinaIndiaFaceoff
रवीश कुमार को बेल्ज़ियम में बड़ा सम्मान मिला है। इधर लम्बे अरसे से बीमार उनकी माँ का जाना बहुत दुखद है। वे विपरीत हालात में सार्थक पत्रकारिता कर रहे पुत्र को मिले यश से संतोष पाते गई होंगी। दिवंगत को विनम्र श्रद्धांजलि।
@ravishndtv
और आगे बढ़ें। माँ जहाँ भी होंगी, आशीष देंगी।
क्या यह अधिकारी मूढ़ है? एक शिक्षक के कुर्ता-पायजामा पहनने पर एतराज? वह भी इतने अपमानजनक तेवर में? गाँव-क़स्बों में ‘मास्साब’ की तो यही वेशभूषा होती थी। आचार्य हज़ारी ��्रसाद द्विवेदी, डॉ नामवर सिंह, डॉ दयाकृष्ण जैसे नामी शिक्षक शहरों में धोती-कुर्ते में ही पढ़ाते थे।
@NitishKumar
भारत में कुर्ता पायजामा पहनना कब से अपराध हो गया है ? कुर्सी का इतना रौब ग़लत है।
प्रधानाचार्य के साथ सरेआम बदतमीज़ी करने वाले
@collectorlak
DM लखीसराय संजय कुमार सिंह के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
@NitishKumar
@IASassociation
चन्नी की पंजाबी में तू-तड़ाका खोजने वाला भक्त वीडियो ‘नोट में चिप’ की तरह वायरल हो गया। मैं दस बरस चण्डीगढ़ रहा हूँ। बात का बतंगड़ बनाने वाले ऐंकरों को बता सकता हूँ कि आम पंजाबी में “तुसी” का मतलब “आप” ही होता है। मालवा क्षेत्र में यही तुसी तुसीं हो जाता है और माझा में तुसां।
बालाकोट भाजपा को भारी पड़ गया। झूठ पकड़ा गया। सिर्फ़ निरीह चीड़ों के पेड़ फोड़े हैं। फिर बहादुर अभिनंदन की गिरफ़्त। लोगों को जोश बैठ गया है। हार के जो आसार थे अब और पुख़्ता हो गए। ठगे मतदाता सफ़ाया ही न कर दें। पर इस आशंका ने अगली बेवक़ूफ़ी का ख़तरा पैदा कर दिया है। राम भली करें।
भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां का बनारस। गंगा में नहाए, मसजिद में नमाज़ पढ़ी और बालाजी मंदिर में रियाज़ किया। अब तो मसजिद में शिवलिंग खोदने का ज़माना आ गया।
सचिन पायलट ने जब अपनी ही पार्टी से धोखा किया और स्पीकर ने दलबदल क़ानून के तहत नोटिस दिया, तब हाईकोर्ट में उस बाग़ी गुट के वकील (लंदन से) हरीश साल्वे थे।
जानते हैं कल महाराष्ट्र सरकार गिराने निकले बाग़ी नेता एकनाथ शिंदे के वकील सुप्रीमकोर्ट में कौन होंगे?
वही, हरीश साल्वे!
राजीव त्यागी जुझारू प्रवक्ता थे। एनसीआर में मेरे पड़ोस में रहते थे। बहुत अफ़सोस हुआ इस तरह चले जाने से। ... लेकिन टीवी की इस सिर-फुटव्वल को हम ‘डिबेट’ कब तक कहते रहेंगे?
टीवी चैनलों पर मुसलमानों के प्रतिनिधि बनाकर जिन मौलवी-मौलानाओं को विद्वान के रूप में पेश कर दिया जाता है, दरअसल उनकी कोई हैसियत ही नहीं। वे प्रचार के लालच में आ बैठते हैं। एक चैनल ने तो संघ-समर्थक को तो दूसरे ने ट्रेवेल एजेंट तक को ला बिठाया।
“नमस्कार, जय बजरंग बली”? कैसी निराली पत्रकारिता है। और ‘हनुमान चालीसा’ इनके लिए हो गया “जानकारी” देने वाला प्रामाणिक दस्तावेज़! किसी ने ठीक लिखा है, अनपढ़ पत्रकारों की इन दिनों बहार है।