आप सभी, जो मेरे मित्र, शुभचिंतक, सहकर्मी, सहयात्री, दर्शक, पाठक, फ़ैन, परिचित, अपरिचित, ज़िला और गाँव-ज्वार के लोग,रिश्तेदार-नातेदार, सार्वजनिक जीवन की हस्तियाँ, गुमनाम शहरी हैं, ने मेरे चारों तरफ़ संबल और संवेदना की एक ऐसी दीवार बना दी कि लगा ही नहीं कि सर से माँ का साया उठा…