श्लोक :
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं(1) वातजातं नमामि॥
अर्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में…
प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सील निधान॥
भावार्थ:-प्रभु (श्री रामचन्द्रजी) तो वृक्ष के नीचे और बंदर डाली पर (अर्थात कहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम सच्चिदानन्दघन परमात्मा श्री रामजी और कहाँ पेड़ों की शाखाओं पर कूदने वाले बंदर), परन्तु ऐसे…
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
अर्थ : जनक की बेटी, जगत् की माता और करुणानिधान की अत्यन्त प्यारी श्रीजानकीजी के दोनों चरण कमलों को मनाता हूँ । ध्यान करता हूँ : जिनकी कृपा से निर्मल मति की प्राप्ति हो ।…
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
अर्थ : ऋक्षपति जाम्बवान ने कहा कि हनुमान् ! सुनो । हे बलवान् ! तुमने चुप्पी क्यों साध रक्खी है ? हे पवन के पुत्र ! तुम्हें पवन के समान बल है। तुम बल विवेक और विज्ञान के निधान हो ।…
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि॥
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी॥
अर्थ : मैं अति पवित्र अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों की नाश करनेवाली सरयू नदी की वन्दना करता हूँ। फिर पुरी के नर-नारियों को प्रणाम करता हूँ, जिनपर प्रभु की थोड़ी ममता…
छंद :
जय कृपा कंद मुकुंद द्वंद हरन सरन सुखप्रद प्रभो।
खल दल बिदारन परम कारन कारुनीक सदा बिभो॥
सुर सुमन बरषहिं हरष संकुल बाज दुंदुभि गहगही।
संग्राम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लही॥1॥
अर्थ : हे कृपा के कंद! हे मोक्षदाता मुकुन्द! हे (राग-द्वेष, हर्ष-शोक, जन्म-मृत्यु आदि) द्वंद्वों…
सोरठा : पुरुष सिंह दोउ बीर हरषि चले(1) मुनि भय हरन।
कृपासिंधु मतिधीर अखिल बिस्व कारन करन॥
अर्थ : दोनों वीर पुरुषों में सिंह थे। हर्षित होकर मुनि के भयहरण के लिए चले । क्योंकि कृपा के समुद्र हैं। मतिधीर हैं और सम्पूर्ण विश्व के कारण के भी असाधारण कारण हैं ।…
#मानससरस्वती
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में त्रिकाण्डमय वेद (ज्ञानकाण्ड, उपासनाकाण्ड, कर्मकाण्ड) के वर्णन की उपमा संतसमाज रुपी तीर्थराज प्रयाग में सरस्वतीजी, गङ्गाजी एवं यमुनाजी के सङ्गम से दी है।
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
राम भक्ति जहँ…
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी॥
नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई॥
अर्थ : मणि, मानिक और मोती की जैसी शोभा होनी चाहिए, वैसी साँप, पर्वत और हाथी के मस्तक पर नहीं होती । राजा, मुकुट और नवयौवना स्त्री का शरीर पाकर वे अधिक शोभा को प्राप्त…
"तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह…
छंद : पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना॥
अर्थ : हे शठ मन! सुन पतितपावन राम को भजनकर किसने गति नहीं पायी ? गणिका, अजामिल, ब्याध, गीध, गज आदि बहुतेरे पापी तर गये ।
व्याख्या : राम पतितपावन हैं। जैसे ही जीव भजन के लिए…
प्रसङ्ग: मन्दोदरी द्वारा भगवान श्रीराम के कार्योपाधिक स्वरुप (व���श्वरुप) का वर्णन
मंदोदरी सोच उर बसेऊ। जब ते श्रवनपूर महि खसेऊ॥3॥
अर्थ : जब से कान का कुण्डल पृथ्वी पर गिरा तब से मन्दोदरी के हृदय में चिन्ता बस गयी।
व्याख्या : मन्दोदरी को कभी कभी विशेष घटना घटित होने पर सोच हो…
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥
अर्थ : उत्पत्ति, स्थिति, संहार करनेवाली, क्लेशों को हरण करनेवाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों की करनेवाली, राम की प्यारी सीताजी की मैं वन्दना करता हूँ ।
व्याख्या : जिनके गुणग्राम से परिचय प्राप्ति…
सोरठा : जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
अर्थ : जिनके स्मरण मात्र से सिद्धि होती है, जिनका मुख श्रेष्ठ हाथी का सा है, वे ही बुद्धि की राशि और शुभगुणों के घर गणनायक अनुग्रह करो ।
व्याख्या : आगे चलकर वह रूपक मिलेगा,…
चौपाई :
देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना ॥
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी ॥
करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना ॥
अर्थ : सेतु की अति सुन्दर रचना देखकर कृपासिन्धु रामजी हँस कर बोले । यह भूमि अत्यन्त रमणीय और उत्तम है। इसकी अपार…
चौपाई :
काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कंज बारिद गंभीरा॥
अरुन चरन पंकज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥
अर्थ : नील कमल और गम्भीर बादल के समान श्याम शरीर की शोभा करोड़ों काम को सी है। अरुण चरणकमल में नख की ज्योति ऐसी शोभा दे रही है, जैसे कमल के दलों पर मोती बैठे हों।…
इष्टदेव मम बालक रामा। सोभा बपुष कोटि सत कामा॥
निज प्रभु बदन निहारि निहारी। लोचन सुफल करउँ उरगारी॥
भावार्थ:-बालक रूप श्री रामचंद्रजी मेरे इष्टदेव हैं, जिनके शरीर में अरबों कामदेवों की शोभा है। हे गरुड़जी! अपने प्रभु का मुख देख-देखकर मैं नेत्रों को सफल करता हूँ।
चौ: जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा॥
अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा॥
अर्थ : हे मुनीश्वरो ! जो तुम पहले मिलते तो मैं तुम्हारा उपदेश सिर पर धरकर सुनती। अब तो मैंने अपना जन्म शम्भु के लिए हार दिया। अब गुण दोष का विचार कौन करे?…
दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा॥
अर्थ : स्वार्थपरायण और नीच रावण वहाँ गया जहां मारीच था और उसको सिर नवाया।
व्याख्या : जबतक रावण मारीच के पास न पहुँचा तबतक यहाँ से सीताजी हटा दी गयीं। लछिमनजी के लौट आने के बाद रावण मारीच के पास पहुँचा। तबतक अपने ही रूप में रहा। अतः…
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥
अर्थ : मैं ज्ञानमय, नित्य, शङ्कररूपी गुरुदेव की वन्दना करता हूँ, जिनका आश्रित होकर ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है ।
व्याख्या : मङ्गलाचरण करने और श्रद्धा विश्वास का आश्रयण करने…
दो. जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु ॥ ३५ ॥
अर्थ : यह मानस जैसा है जिस विधि से हुआ और जिस कारण से जगत् में इसका प्रचार हुआ अब वही सब प्रसङ्ग उमा वृषकेतु को स्मरण करके कहता हूँ।
व्याख्या : १. मानस का मानचित्र खींचने,…
प्रसङ्ग: हनुमान्-विभीषण संवाद
लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ॥
मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा ॥
अर्थ : लङ्का तो निशिचर समूह का निवास है । इहाँ सज्जन का घर कहाँ ? हनुमानजी मन में तर्क करने लगे। उसी समय विभीषन जागे ।
व्याख्या : घर घर देख…
पृथ्वी भारहरण हेतु ब्रह्माजीकृत श्रीरामस्तुति
छन्द : जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥1॥
अर्थ : हे देवताओं के…
त्रिज���ा नाम राच्छसी एका । राम चरन रति निपुन बिबेका ॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना । सीतहि सेइ करहु हित अपना ॥ १ ॥
अर्थ : उनमें एक त्रिजटा नाम की राक्षसी थी। उसको रामजी के चरणों में प्रीति थी और विवेक में निपुण थी। उसने सबको बुलाकर अपना स्वप्न सुनाया। कहा कि सीताजी की सेवा करके अपना…
चले राम लछिमन मुनि संगा। (1)गए जहाँ जग पावनि गंगा॥
गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥1॥
अर्थ : राम और लक्ष्मण मुनिजी के साथ चले। जहाँ जगत् को पवित्र करने वाली गङ्गा थी वहाँ गये। जिस प्रकार से गङ्गा पृथ्वी पर आई वह सब कथा गाधिराज के पुत्र विश्वामित्र ने…
#रामचरितमानसप्रतिदिनएकदोहा
बालकाण्ड-मङ्गलाचरण
श्लोक : वर्णानामर्थ संघानां रसानां (१)छंदसामपि।
मंगलानां(2) च कर्त्तारौ (3)वंदे वाणीविनायकौ॥
अर्थ : अक्षरों के, अर्थसमूहों के, रसों के और छन्दों के भी तथा मङ्गलों के करनेवाली वाणी : सरस्वती और उनके आश्रय : विनायक गणेश…
दो. पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि।
बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि ॥ ११९ ॥
अर्थ : बार बार प्रभु के चरण कमलों को पकड़कर गिरिजा मानो प्रेम रस से सानी हुई श्रेष्ठ वाणी बोलीं ।
व्याख्या : बार बार चरणस्पर्श से शिष्या की शुश्रूषा दिखलाई। अथवा चरणग्रहण से…
छन्द :
परसत पद पावन सोकनसावन प्रगट भई तपपुंज सही।
देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥
अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥1॥
अर्थ : पवित्र करनेवाले और शोकनाश करनेवाले चरणों के छूते ही, सच्ची तपस्या की पुञ्ज…
सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥
पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥2॥
अर्थ : सूर्पणखा नाम की रावण की बहन थी । जो नागिन जैसी भयानक और दुष्ट हृदय थी । वह एक बार पञ्चवटी गयी । दोनों कुमारों को देखकर विकल हो गयी ।
व्याख्या : सूपनखा जिमि कीन्ह कुरूपा :…
नामरामायण
गायन: एम एस सुब्बुलक्ष्मी
॥ बालकाण्डः ॥
शुद्धब्रह्मपरात्पर राम ।
कालात्मकपरमेश्वर राम ।
शेषतल्पसुखनिद्रित राम ।
ब्रह्माद्यमरप्रार्थित राम ।
चण्डकिरणकुलमण्डन राम ।
श्रीमद्दशरथनन्दन राम ।
कौसल्यासुखवर्धन राम ।
विश्वामित्रप्रियधन राम ।
घोरताटकाघातक राम ।…
--लक्ष्मणगीता--
भयउ बिषादु निषादहि भारी। राम सीय महि सयन निहारी ॥
अर���थ : राम सीय का पृथ्वी पर सोना देखकर निषाद को भारी विषाद हुआ ।
व्याख्या : राम जानकी का महीशयन देखकर सभी देखनेवाले को विषाद हुआ । पर निषाद को भारी विषाद हुआ संसार से विषण्णा होने पर ही ज्ञानोपदेश की पात्रता…
प्रसङ्ग: विभीषण शरणागति (सुन्दरकाण्ड)
सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर ॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता ॥
अर्थ : आदर के साथ बन्दर उसे आगे करके करुणाकर रघुनाथ के पास चले । दूर से ही नयाननन्द दान के देनेवाले दोनों भाइयों को देखा ।
व्याख्या: पहरे…
प्रसङ्ग: नारदजी का क्रोध और भगवान को शाप
पुनि जल दीख रूप निज पावा। तदपि हृदयँ संतोष न आवा ॥
फरकत अधर कोप मन माहीं। सपदी चले कमलापति पाहीं ॥
अर्थ : फिर जल में देखा, तो अपना रूप मिल गया था। फिर भी हृदय में सन्तोष न हुआ, ओठ फड़क रहे थे और मन में क्रोध था। जल्दी जल्दी रमापति के…
हनुमानजी का रावण को भगवान श्रीराम के ईश्वर ऐश्वर्य का वर्णन
कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा ॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही ॥
अर्थ : लङ्कापति ने कहा रे बानर तू कौन है और किसके बल से तूने वन उजाड़ा। क्या तूने मुझे कभी कान से भी नहीं…
दो. नारि बिलोकहिं हरषि हियँ निज निज रुचि अनुरूप।
जनु सोहत सिंगार धरि मूरति परम अनूप ॥ २४१ ॥
अर्थ : स्त्रियाँ हर्षित होकर अपनी अपनी रुचि के अनुरूप देख रही हैं। मानो परम अनूपमूर्ति धारण करके शृङ्गार शोभायमान हो।
व्याख्या : रङ्गभूमि की प्रथम पंक्ति में राजा लोग हैं।…
"मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं
वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्री रामभूपप्रियम्॥" ~ अरण्यकाण्ड (मङ्गलाचरण)
अर्थ : धर्मरूपी वृक्ष के मूल, विवेकरूपी समुद्र को आनन्द देनेवाले…
सो. वंदौं गुर पद कंज कृपा सिंधु नररूप हर्।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ ५ ॥
अर्थ : मैं गुरु जी के चरण कमलों की वन्दना करता हूँ, जो कृपा समुद्र और नर रूप में हर है। महा मोहरूपी अन्धकार के समूह के लिए जिनके वचन सूर्य की किरणों के समान हैं ।
व्याख्या : इस…
प्रसङ्ग: धनुषयज्ञ में जनकजी की निराशा एवं श्री लक्ष्मणजी का क्रोध
भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥
डगइ न संभु सरासनु कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥
अर्थ : दस हजार राजा एकही साथ उठाने लगे। पर वह टारे न टरा । शिवजी का धनुष उसी भाँति नहीं डिगता है जिस भाँति कामियों के…
प्रसङ्ग: नाम महिमा(बालकाण्ड)
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥१॥
अर्थ : नाम के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल साज रखने पर भी मङ्गल की राशि हैं । शुकाचार्य, सनकादिक सिद्ध, मुनि और योगी लोग नाम के प्रसाद…
पूर्वी उत्तर प्रदेश का पारम्परिक फाग (होली) गायन
गायक:अजय प्रकास दुलारे एवं साथी
"कहें भक्त प्रहलाद पिता से
तुम भजन करो रघुराई
कर्ता धर्ता वो ही राम है
जाको तुम बिसराई
मेरा सच्चा राह निरामल…
दो. संग सखीं सुदंर चतुर गावहिं मंगलचार।
गवनी बाल मराल गति सुषमा अंग अपार ॥ २६३ ॥
अर्थ : संग में सब सखियाँ चतुर और सुन्दर थीं। वे मङ्गलाचार गान कर रही थीं। सीताजी बालहंस की गति से चलीं। अङ्ग की अपार परमा शोभा थी ।
व्याख्या : रङ्गभूमि में प्रवेश के समय कहा "संग सखी सब…
प्रसङ्ग: जटायु को सद्गति दान
आगे परा गीधपति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा ॥
अर्थ : आगे जाने पर उन्होंने गीधपति जटायु को पड़ा देखा ।
व्याख्या: इस भाँति जहाँ जटायुजी पड़े थे वहाँ पहुँच गये । गीधपति को सामने पड़ा हुआ देखा । गीधपति ने नहीं देखा । आसन्नमृत्यु हैं । आँख बन्द है…
जिस भाँति तारागणों से आकाश भरा पड़ा है उसी भाँति रामजी के नामों से रामचरितमानस भरा पड़ा है। परमेश्वर के सभी नाम गौण हैं अर्थात् गुणसूचक हैं । उन सब नामों के अर्थ हैं। जिस भाँति आकाश में ताराओं के गुच्छे हैं जिन्हें नक्षत्र कहते हैं. उनकी, अभिजित को मिलाकर, अट्ठाईस संख्या…
रावण वधोपरांत देवराज इंद्र कृत श्रीराम स्तुति
दो. अनुज जानकी सहित प्रभु कुसल कोसलाधीस।
सोभा देखि हरषि मन अस्तुति कर सुर ईस ॥ ११२ ॥
अर्थ : छ���टे भाई तथा जानकी के सहित कोशलाधीश को कुशल देखकर तथा उनकी शोभा देखकर देवराज मन में आनन्दित होकर स्तुति करने लगे ।
व्याख्या : रावण…
विनयपत्रिका( पद संख्या-६४)
बंदौ रघुपति करुना-निधान।
जाते छूटै भव-भेद-ग्यान ॥ १ ॥
रघुबंस-कुमुद-सुखप्रद निसेस।
सेवत पद-पंकज अज महेस ॥ २ ॥
निज भक्त-ह्रदय-पाथोज-भृंग।
लावन्य बपुष अगनित अनंग ॥ ३ ॥
अति प्रबल मोह-तम-मारतंड।
अग्यान-गहन-पावक प्रचंड ॥ ४ ॥…
वर्षा ऋतु वर्णन (किष्किंधाकाण्ड)
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए ॥
अर्थ : वर्षाऋतु में मेघ आकाश मण्डल में घिर गये। गरजने के समय बड़े सोहावने लगते थे ।
व्याख्या : पहिले कह चुके हैं गत ग्रीषम बर्षा रितु आई । सो आ गयी। आकाश में बादल घिर आये । वर्षा काल में मेघ की शोभा…
राम राम रमु(१),राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
रामनाम-नवनेह-मेहको,मन! हठि होहि पपीहा ॥ १ ॥
सब साधन-फल कूप-सरित-सर,सागर-सलिल-निरासा।
रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा ॥ २ ॥
गरजि,तरजि,पाषान बरषि पवि,प्रीति परखि जिय जानै।
अधिक अधिक अनुराग उमँग उर, पर परमिति पहिचानै ॥ ३…
विनयपत्रिका( पद संख्या-१६)
देवी-स्तुति
जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायनी,भय-हरणि कालिका।
मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि,पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरणमालिका ॥ १ ॥
वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल-शेल-धनुषबाण,…
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें।🙏🙏
दोहा : सुख संदोह मोह पर ग्यान गिरा गोतीत।
दंपति परम प्रेम बस कर सिसुचरित पुनीत॥199॥
भावार्थ:-जो सुख के पुंज, मोह से परे तथा ज्ञान, वाणी और इन्द्रियों से अतीत हैं, वे भगवान दशरथ-कौसल्या के अत्यन्त प्रेम के वश…
प्रसङ्ग: भरत चरित्र की महिमा
दो. नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदय��� समाति ॥
मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति ॥ ३२५ ॥
अर्थ : नित्य प्रभु की पादुका की पूजा करते हैं, प्रीति हृदय में समाती नहीं और आज्ञा मांग मांगकर बहुत भाँति के राजकार्य का सम्पादन करते हैं।…
विनयपत्रिका( पद संख्या-१०९)
गायन:- शर्मा बन्धु
कस न करहु करुना हरे! दुखहरन मुरारि!
त्रिबिधताप-संदेह-सोक-संसय-भय-हारि ॥ १ ॥
इक कलिकाल-जनित मल, मतिमंद, मलिन-मन।
तेहिपर प्रभु नहिं कर सँभार, केहि भाँति जियै जन ॥ २ ॥
सब प्रकार समरथ प्रभो, मैं सब बिधि दीन।
यह जिय जानि…
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥
मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही। मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥1॥
भावार्थ:-कंकण (हाथों के कड़े), करधनी और पायजेब के शब्द सुनकर श्री रामचन्द्रजी हृदय में विचार कर लक्ष्मण से कहते हैं- (यह ध्वनि ऐसी आ रही है) मानो कामदेव ने विश्व…
सकल काम प्रद तीरथराऊ। बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ॥
मागउँ भीख त्यागि निज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू॥
अस जियँ जानि सुजान सुदानी। सफल करहिं जग जाचक बानी॥
दोहा : अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान।
जनम-जनम रति राम पद यह बरदानु न आन॥
भावार्थ:-भरतजी ने हाथ जोड़कर…
‘Kshatriyas are not allowed to take trading or farming which is reserved for Vaishya. They are also not allowed to serve others, which is reserved for Shudra
They must perform their role - defend the people’
- Bheema, explaining क्षात्र धर्म to Yudhishthir
#violence
#Ahimsa
नामरामायण
॥ बालकाण्डः ॥
शुद्धब्रह्मपरात्पर राम ।
कालात्मकपरमेश्वर राम ।
शेषतल्पसुखनिद्रित राम ।
ब्रह्माद्यमरप्रार्थित राम ।
चण्डकिरणकुलमण्डन राम ।
श्रीमद्दशरथनन्दन राम ।
कौसल्यासुखवर्धन राम ।
विश्वामित्रप्रियधन राम ।
घोरताटकाघातक राम ।
मारीचादिनिपातक राम । १०
कौशिकमखसंरक्षक…
भगवान श्रीराम के प्रति उनकी सास का शिशु-वात्सल्य भाव
भगवान जब भाइयों सहित वधूरुप सीताजी एवं उनकी बहनों को विदा कराने जनकपुर के राजमहल में गये तो भगवान की सासू माताओं ने चारो भाइयों को उबटन लगाकर पहले स्नान करवाया और फिर भोजन करवाया।
"देखि राम छबि अति अनुरागीं। प्रेमबिबस पुनि…
"रघुपति राघव राजा राम पतितपावन सीताराम" का मूल शुद्ध संस्करण। विकृत संस्करण नही।
रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम गंगा तुलसी शालग्राम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम जयजय राघव सीताराम ॥ - श्रीलक्ष्मणाचार्य…
#विवाहपंचमी
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (यानी इस वर्ष १७ दिसंबर, रविवार को) विवाह पंचमी मनाई जाती है।
इस दिन भगवान श्रीराम और मां जानकी का विवाह हुआ था।
इस खण्ड में बारात अगवानी, जनवास, राम लक्ष्मण का चक्रवर्ती से मिलन, नगरवासियों का…
विनयपत्रिका( पद संख्या-१११)
गायन:- डा. सनातन दीप
केसव! कहि न जाइ का कहिये।
देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये ॥ १ ॥
सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।
धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे ॥ २ ॥
रबिकर-नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि…
#मानससरस्वती
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥
भावार्थ:-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख…
#लीलागानएवंचिन्तन
गीत:- गोस्वामी श्री बिन्दु जी महाराज
गायन:- स्व. पुरुषोत्तम दास जलोटा
प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा।
अपना मान टले टल जाए भक्त का मान ना टलते देखा।
जिसकी केवल कृपादृष्टि से सकल सृष्टि को चलते देखा,
उसको गोकुल के गोरस पर सौ-सौ बार मचलते…
वेदान्तवेद्य पूर्णतम पुरुषोत्तम ‘श्रीराम’
(भागवत सुधा -करपात्री महाराज)
चक्रवर्ती नरेन्द्र दशरथ महाराज के ऊपर अनुग्रह करके भगवान परात्पर परब्रह्म श्रीरामचन्द्र राघवेन्द्र के रूप में प्रकट हुए। श्रीमद्भागवत में लिखा है-
"एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्" ~…
जय महावीर हनुमान
जब कलियुगकी ये घोर निशा, दिग्भ्रांत करेगी मानवता ।
यम नियम मिटाये जायेंगे, स�� ओर बढ़ेगी दानवता ॥
महलोंका राम न ढूँढ़ेगा, जबतक किष्किन्धाकी घाटी ।
हा ! पवनपुत्रके सम्बल बिन, ना निखर सकेगी यह माटी ॥
वीरत्व देशका गर ना जगा, अहिरावणकी बन आयेगी ।
रख पायें गौरव हम…
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को॥
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ॥
अर्थ : जो सुन्दर हैं सुजान हैं कृपा निधान हैं । जो अनाथ पर प्रीति करते हैं । वह केवल अकाम हित रामजी हैं ।…
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
भावार्थ : जिस भीषण हलाहल विष से सब देवतागण जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान कर लिया, रे मन्द मन! तू उन शंकरजी को क्यों नहीं भजता? उनके समान कृपालु (और) कौन है?
#रामचरितमानस #किष्किंधाकाण्ड…
#मानससरस्वती
भगवान शिव का वेदान्त सिद्धान्त
"झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें ॥
जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई ॥"
की व्याख्या
(भगवान के स्वरुप और उसके सापेक्ष जीव और जगत की स्थिति को समझाने के लिये गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं अपनी…
#मानसगान
रामचरितमानस मासपारायण- सप्तम दिवस
प्रसङ्ग: पृथ्वी की व्याकुलता। देवताओं की शरण लेना, सबका ब्रह्मलोक जाना। ब्रह्मदेव भी निरुपाय, अविनाशी के शरण ग्रहण का उपदेश। देवताओं की गोष्ठी, ब्रह्मस्तुति. आकाशवाणी, ब्रह्मदेव द्वारा देवताओं को वानर शरीर से हरिपद सेवन की शिक्षा,…
विनयपत्रिका( पद संख्या-१६२)
ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥ १ ॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी ।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥ २ ॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं ।
सो संपदा बिभीषन कहँ अति…