
Shakeel Azmi
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Poet☆Lyricist☆songs:ekTukdaDhoop,intezari,saansonKo,marizeIshq,tuBanjaGaliBanarasKi,teriFariyad,jeeneBhiDe,sunleZara,tuZaroori,ayeKhuda,manjha,12Books,23Awards.
Mumbai, India
Joined May 2019
जान दे सकता है क्या साथ निभाने के लिए .हौसला है तो बढ़ा हाथ मिलाने के लिए . मैंने दीवार पे क्या लिख दिया खुदको इक दिन .बारिशें होने लगीं मुझको मिटाने के लिए . - शकील आज़मी
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मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं .साज़िशें होने लगीं मुझको बदलने के लिए .- शकील आज़मी.
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खुदको इक इश्क में गुज़ार दिया .इश्क ने सिर्फ इन्तज़ार दिया . इक मोहब्बत का ख़ात्मा हुआ यूँ .हमने इक दूसरे को मार दिया . - शकील आज़मी.
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चश्म-ए-इन्साफ में चुभती है चमक जिसकी शकील .दस्त-ए-मुनसिफ में वो सोने का कलम किसका है .- शकील आज़मी . चश्म-ए-इन्साफ = इन्साफ की आंख .दस्त-ए-मुनसिफ = न्यायाधीश का हाथ.
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सैकड़ों जाते हैं दरवाज़े पे दस्तक दे कर .दिल में आने की इजाज़त नहीं मिलती सबको .- शकील आज़मी.
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वो दूर हो तो लगे उस से कोई रिश्ता है .करीब आए तो मैं उसका कुछ लगूं भी नहीं .- शकील आज़मी.
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तोड़ दो तो भी सच ही बोलेगा .आइना कब किसी से डरता है .- शकील आज़मी.
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RT @KalshiSports: Game by the numbers. Kalshi volume: $26.6m.Spit ejections: 1.Rizzler commercials: 1.Weather delays: 1.AJ Brown catches: 1.
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कभी-कभी तिरी आवाज़ पर रुकूं भी नहीं .कि तू पुकारे मुझे और मैं सुनूं भी नहीं . इस इन्तज़ार में जिद का भी एक पहलू है .किवाड खोल दूं और रास्ता तकूं भी नहीं . - शकील आज़मी.
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हुआ न ख़त्म सारों से अज़ाब बारिश का .वही है शह्र वही मसअला रिहाइश का . ज़मीं की कोख उजड़ जाए अबके बारिश में .पता चले न हमें आसमां की साज़िश का . यहां के लोग भी होते थे देवता जैसे .बड़ा रिवाज था इस गांव में परसतिश का . - शकील आज़मी.
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मैं ग़ज़ल के लहजे में इस तरह सुनाई दूं .भीड़ में भी निकलूं तो मुनफ़रिद दिखाई दूं . क्यों न इस रवायत को तोड़कर गुज़र जाऊं .जिस्म की इमारत से रूह को रिहाई दूं . कितना ही अंधेरा हो ज़िन्दगी के चेहरे पर .तू मुझे नज़र आए मैं तुझे सुझाई दूं . - शकील आज़मी.
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मैं ने रोते हुए देखा है अली बाबा को .बाज़ औक़ात ख़ज़ाना भी बुरा लगता है .- शकील आज़मी . बाज़ औक़ात = कभी कभी.
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ख़ुदको इतना भी मत बचाया कर .बारिशें हों तो भीग जाया कर .दर्द हीरा है दर्द मोती है .दर्द आंखों से मत बहाया कर .काम ले कुछ हसीन होठों से .बातों बातों में मुस्कुराया कर .धूप मायूस लौट जाती है .छत पे कपड़े सुखाने आया कर .चांद लाकर कोई नहीं देगा .अपने चेहरे से जगमगाया कर .- शकील आज़मी.
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ज़ेह्न में बीते हुए लम्हों का ख़मियाज़ा न था .डूबने से क़ब्ल गहराई का अन्दाज़ा न था . चोर घुस आए तो नंगी चौखटों के दिन फिरे .इस से पहले मेरे घर में कोई दरवाज़ा न था . - शकील आज़मी.
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Join Hillsdale College President Larry Arnn, U.S. Secretary of Defense Pete Hegseth, and other leaders to remember and honor the stories of great Americans in our new video series:
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चढ़ा हुआ है जो दरिया उतरने वाला है .अब इस कहानी का किरदार करने वाला है . ये आगही है किसी हादसे के आमद की .बदन का सारा असासा बिखरने वाला है . ज़रा सी देर में ज़नजीर टूट जाएगी .जुनून अपनी हदों से गुज़रने वाला है . - शकील आज़मी.
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तुझको सोचूं तो तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए .मेरी ग़ज़लों में मोहब्बत की तरह तू आए . लग के सोया है तिरा दर्द मिरे सीने से .सुब्ह हो जाए कि जज़्बात पे क़ाबू आए . अबके मौसम में ये दीवार भी गिर जाए शकील .इस तरह जिस्म की बुनियाद में आंसू आए . - शकील आज़मी.
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कर दिया आज़ाद इक तोते को पिंजरे से शकील .जब मुझे परदेस में अपना वतन याद आ गया .- शकील आज़मी . 🇮🇳 जश्न-ए-आज़ादी मुबारक हो मेरे भारत 🇮🇳.
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फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है .तू नहीं है तो ज़माना भी बुरा लगता है .- शकील आज़मी.
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होंठ ख़ामोश हैं कई दिन से .इन गुलाबों पे तितलियां रख दे . एक झोंका हवा का यूं आए .खोलकर सारी खिड़कियां रख दे . मेरे ख्वाबों को तोड़कर कोई .मेरी आंखों में किरचियां रख दे . अब जवानी हिसाब मांगती है .मेरे चेहरे पे झुर्रियां रख दे . - शकील आज़मी.
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मिरी ही ज़ात में हंगामा-ए-सहर भी था .शब-ए-ख़मोश का मैं आख़िरी पहर भी था . किसी का बढ़ता हुआ हाथ सर्द मौसम में .पकड़ लिया था मगर छूटने का डर भी था . गुनाह था मुझे जिसके बदन का साया भी .वही मिरा कई रातों से हमसफ़र भी था . - शकील आज़मी.
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जाने वाले उदासियां रख दे .मुझ में अपनी निशानियां रख दे . तेरे बिन रेत का मकान हूं मैं .मुझमें थोड़ी सी आंधियां रख दे . या कोई ख़्वाब दे निगाहों को .या दरीचे पे उंगलियां रख दे . हमसे मिलना है तो क़रीब से मिल .या तअल्लुक़ में दूरियां रख दे . - शकील आज़मी.
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