Kitabganj
@Kitabganj1
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कहीं नहीं, तो कविताओं में ही सही- कुछ असंभव पर- घटता रहे ।।
Joined October 2018
तुम किताबें पढोगे नहीं- तो कहानी तुम्हारी यूँ ही रह जायेगी तुम्हारे चीखने को कह कर संगीत कोई इतिहास की किताब बिक जायेगी।। (फ़ोटो: जय भीम, 2021)
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तुम कहते हो एक अच्छी कविता पर हर किसी की नज़र पड़ती है शायद तुमने उन कविताओं को नहीं जाना जो दूब की भाँति उगती हैं-निशब्द जब तुम अपनी उँगलियों से किसी सुंदर पुष्प की कोमल पंखुड़ियों सहलाते हो वे सहलातीं हैं तुम्हारे तलवे तुम फिर भी उन्हें अनदेखा कर बढ़ जाते हो दूसरे पुष्प की ओर
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मैं मिला तुमसे- वो शापित पुष्प- जो इतना सुंदर था कि उसे ईश्वर की ही नज़र लग गयी। (आर्ट: अज्ञात)
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__ मेरी मौत किसी शहर और काल में नहीं होगी .. मैं मरूँगा पहले व्यक्तियों के भीतर- जिनकी कोई गलती न थी उनके शरीर तो दफ्तरों में पहले ही तोड़े जा चुके थे- और उनकी हड्डियों में इतना दर्द था कि किसी को सहेज रख पाना मुश्किल था ..!
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मैं मरूँगा पहले घटनाओं के भीतर जो इतना घर कर गईं मेरे भीतर कि जगह ही नहीं बची मुझमें मेरे अस्तित्व के लिए। मैं मरूँगा पहले उम्मीदों में जिसने मुझे सिर्फ इसलिए जीवित रखा किमैं दूसरा दर्द देख सकूँ ..! __ ~ किताबगंज @Kitabganj1
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@Kitabganj1 ‘मैं सिमट जाऊँगा आखिरकार एक पुष्प में जो तोड़ा जाएगा किसी अल्हड़ के हाथ बिना मतलब वैसे ही जैसे मैंने जीना चाहा था ’ ये पंक्ति और कविता जिसे बार बार पढ़ा जाएगा ! 🌻🤍📄
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मैं सिमट जाऊँगा आखिरकार एक पुष्प में- जो तोड़ा जाएगा किसी अल्हड़ के हाथ बिना मतलब- वैसे ही जैसे मैंने जीना चाहा था।। (फ़ोटो: @thedelhiwalla ) N/N
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मैं मरूँगा पहले उन संस्थाओं में जिन्हें मुझे समाज देकर खरीद लेने की कोशिश की, मुझे मेरी कविताओं से इतर कायर, कमज़ोर और फ़िरकापरस्त बनाने की पुरजोर कोशिश की। मैं मरूँगा पहले अपने लिखे में- मेरी कविताएँ जो सिकंदर की तरह विश्व विजय की चाह में निकली थीं और खरीद ली गईं। 3/N
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मैं मरूँगा पहले घटनाओं के भीतर जो इतना घर कर गईं मेरे भीतर कि जगह ही नहीं बची मुझमें मेरे अस्तित्व के लिए। मैं मरूँगा पहले उम्मीदों में जिसने मुझे सिर्फ इसलिए जीवित रखा कि मैं दूसरा दर्द देख सकूँ। 2/N
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मेरी मौत किसी शहर और काल में नहीं होगी- मैं मरूँगा पहले व्यक्तियों के भीतर- जिनकी कोई गलती न थी उनके शरीर तो दफ्तरों में पहले ही तोड़े जा चुके थे- और उनकी हड्डियों में इतना दर्द था कि किसी को सहेज रख पाना मुश्किल था। 1/N
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तुम किताबें पढोगे नहीं- तो कहानी तुम्हारी यूँ ही रह जायेगी तुम्हारे चीखने को कह कर संगीत कोई इतिहास की किताब बिक जायेगी।। - @Kitabganj1 लेखक गाँव, देहरादून, उत्तराखंड 📍
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मेरी दुनिया में थोड़ी अच्छाई बचा लेने की तमाम कोशिशें इसलिए हैं बस कि इसी दुनिया में तुम अभी तक बचे हो। ~ किताबगंज @Kitabganj1
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मेरे शहर आने तक शहर बीत चुका था- मैं जिस व्यक्ति से मिला देर से मिला। किसी के लौट आने तक का सब्र अब किस में ही था- मैं पहुंचा जब तो उस शहर के हाथ से वक़्त रिसता जा रहा था मेरे हाथ पकड़ने तक सब बीत चुका था।। (फ़ोटो :अज्ञात)
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और ये मालूम चला कि बीबीसी ने इस किताब पर एक फ़िल्म भी बनाई है और इस पर एक विविध भारती का एक सीरियल भी है, जिसे आप यूट्यूब पर भी देख सकते हैं। आम लोगों की उदासी के लिए किसी किताब ने वक़्त निकाला है, इसलिए इसे जरूर पढा जाना चाहिए। 🌻 N/N
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ये ऐसी ही कहानी है।इसे पढ़ते हुए मैं खुद इतना उदास हो गया था कि बीच-बीच में इसे पढ़ना बंद करना पड़ा। थोड़ी तहकीकात की तो पता चला कि, 'पचपन खम्बे और लाल दीवार', नाम जो है वो लेडी श्रीराम कॉलेज में बने खम्बों से प्रेरित है, जहाँ लेखिका खुद पढ़ाया करती थीं। 5/N
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गर्ल्स कॉलेज की छात्राएं भी छुप-छुप बेढंगे कमेंट्स पास करने लगती हैं। कॉलेज के पचपन खम्बे और लाल दीवार के बीच सुषमा को घुटन महसूस होने लगती है। ये उसी घुटन की कहानी है। सबसे उदास वो कहानियाँ होती हैं जो कहानी न होकर जीवन के इतने करीब नज़र आती हैं कि पढ़ने वाला डर जाये। 4/N
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वो अब तीस की उमर पार कर चुकी है (कहानी 1961 में लिखी गयी थी), और अब शादी उसके जीवन के गोल्स में कहीं नहीं है। इसी बीच उसे अपने से पाँच साल छोटे नील से प्रेम हो जाता है। नील जब उसके सरकारी आवास आना जाना शुरू करता है, तो कॉलेज और होस्टल में बातें बनने लगती हैं। 3/N
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ये कहानी है एक महिला प्रोफेसर सुषमा की, जो अपने घर की अकेली कमाने वाली व्यक्ति है। दो बहनें और एक भाई है, जिनकी पढ़ाई और शादी का जिम्मा सुषमा के सर पर है। माँ-बाप की सारा बोझ सुषमा ने उठा रखा है, और खुद की खुशियाँ भूल चुकी है। 2/N
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जैसे मैंने पिछली किताब के बारे में लिखते हुए बताया कि मुझे सबसे अच्छी किताबें अंकुर गोस्वामी भाई ने दी हैं। हाल में जो उसके यहां से तीन किताबें आईं उनमें दूसरी किताब है उषा प्रियम्वदा की 'पचपन खम्भे लाल दीवारें' । 1/N
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__ मैंने एक सपना देखा था कभी.. जब एक जिद्दी सी लड़की देखना एक ख्वाब था तुम मिले, एक अजनबी से एक दोस्त बने, दोस्त बने पता नहीं ठीक से मगर, तुम आश्वस्त हो ठहरे तुम अपने ख्वाबों के करीब..!
मैंने एक सपना देखा जहां तुम मेरे दोस्त थे- मैंने एक सपना देखा जहां मैं आसमान तक फैल चुका था और मेरी ठंडी हथेलियां तुम्हारे होने भर से गर्माहट से भर चुकी थीं। नींद से उठ कर मैंने जाना चाँद को छू सकने की इच्छा पूरी तो नहीं हो सकती- पर हमें ज़िंदा जरूर रख सकती है।।
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