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RT @Kavya_Ras: इस बार.सोच कर बैठा था.कि तुम्हें लिखूँगा.पर लिख नहीं पाया।.इस बार भी.उन्हें लिखना पड़ा.जो क़लम की माँग थे.क़लम की ज़रूरत है….
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RT @Kavya_Ras: जय-पराजय की.बारहखड़ी में फँसा मनुष्य.बनाता है नए-नए हथियार. अश्वत्थामा के ब्रह्मस्त्र से लेकर.नाइट्रोजन बम तक,.सबके अंत में….
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RT @sahitya_tak: किसी को चाहे कितना भी चाहो.वो एक दिन तुमसे दूर चला जाएगा.किसी को चाहे कितना भी नजदीक से जान लो.उसकी कोई एक बात तुमसे छिपी….
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RT @sahitya_tak: तब तुम्हारा कोई चेहरा नहीं था.आपादमस्तक देह थीं तुम.फ़क़त फड़कती देह.यही किरदार मिला था तुम्हें.जिसे निभाती थीं तुम.दक्ष,….
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RT @sahitya_tak: पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा मिले, इसके लिए @sahitya_tak.पुस्तकों के लिए समर्पित #bookcafe के 'नई किताबें' कार्यक्रम में हर श….
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RT @sahitya_tak: मेरे और तुम्हारे बीच भी सक्रिय हैं एक ऐसा संबंध .जिसमें तुम खोजती हो प्रेम, साहचर्य और सुरक्षा.तुम नहीं जानती हम नहीं हैं….
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8 months
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10 months
RT @sahitya_tak: नई किताबें' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार @jai_shiven हर शनिवार, रविवार @sahitya_tak को #bookcafe के लिए मिली पुस्तकों की….
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11 months
कवि की सामाजिक चेतना और उस के भीतर के मध्य-वर्गीय मनुष्य के बीच के अंतर्द्वंद्व को गहराई से जानने के लिए इस संग्रह की कविताओं पर निगाह करना ज़रूरी सा है। इसी मानवीय ऊहापोह में किस प्रकार कविता बनती है, इस संग्रह में देखा जा सकता है।
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11 months
कमल जीत चौधरी की कविताएँ मार्मिक और नवीन हैं। इनमें समाज, राजनीति और समकालीन पतन की समीक्षा है; और मानव मूल्यों का पक्षपोषण है। दैनंदिन जीवन के सुख-दु:ख, पारिवारिक जीवन और राजनैतिक दुष्चक्र-सब का नया रसायन यहाँ मिलता है। भाषा और शैली में भी ताज़गी है।.— अरुण कमल
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