
शब्दसार
@shabdsar
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साहित्य | संगीत | कला
India
Joined September 2019
आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है, वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का। ~गुलज़ार #जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं 🌸
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सबसे जल्दी उन्नति प्राप्त करनी हो.. ये दो बात पकड़ ले
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चिंतन 'प्रसाद' ने अधिक किया। काव्य 'निराला' का श्रेष्ठ है। शब्द का ज्ञान 'पंत' का सबसे सूक्ष्म है। प्रसाद पढ़ाए जाएँगे। पंत से सीखा जाएगा। निराला पढ़े जाएँगे। ● अज्ञेय
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इतना कुछ था दुनिया में लड़ने झगड़ने को पर ऐसा मन मिला कि जरा-से प्यार में डूबा रहा और जीवन बीत गया ~कुँवर नारायण
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सुबह चली जाती है और फिर लौटती है । दिन जाता है और फिर आता है बारी आने पर । रात जाती है और लौट आती है फिर दिन ढलने पर । सिर्फ़ आदमी — आदमी जाते हैं तो लौटकर नहीं आते । ~काएसिन कुलिएव
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.... और एक सुबह मैं उठूँगा मैं उठूँगा पृथ्वी-समेत जल और कच्छप-समेत मैं उठूँगा मैं उठूँगा और चल दूँगा उससे मिलने जिससे वादा है कि मिलूँगा। ~ केदारनाथ सिंह
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कमजोरियाँ तुम्हारी कोई नहीं थीं मेरी थी एक मैं करता था प्यार... ~ ब्रेख़्त
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एक दिन पाने की विकलता और न पाने का दुख दोनों अर्थहीन हो जाते हैं! ~श्रीकांत वर्मा
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ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं ऐसा मकाँ है जिस में कोई हम-नफ़स नहीं ~मुनीर नियाज़ी
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प्रेम दरअसल पीठ की वो दुखती रग है जिसके ��ौन में सिहरन है समय असमय किसी ऊँगली के निमिष स्पर्श तले भभक पड़ती है फिर उसी ज्वार के अनुनाद को नहीं तो फिर से जड़ अकेली चिर परिचित पीड़ा के निनाद का अहसास लिए कील की तरह अड़ी रहती है -Anjana Tondon
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मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं। ~ हरिशंकर परसाई
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हम जिनके अफ़साने पढ़कर रो देते है हाए! उन किरदारों पर क्या गुज़री होगी -राजेश रेड्डी
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माथा चूमना आत्मा को चूमने जैसा है कौन देख पाता है आत्मा के गालों को सुर्ख होते! -गीत चतुर्वेदी
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वो लड़कियाँ जो रोना चाहती हैं खुलकर किसी कांधे पर सिर रखते हुए अक्सर तकिए पर सिसकती हुई पायी जाती हैं! ~vanish
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"तुम हमेशा जीत जाते हो," मैंने चिड़चिड़ाते हुए कहा। "क्योंकि मैं चालों से ज्यादा तुम्हारी आँखों में देखता हूँ," उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। "तो हार क्यों नहीं जाते एक बार?" "ताकि तुम हमेशा खेलते रहो," उसने प्यादे को आगे बढ़ाते हुए कहा। ~शिवेश
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पूर्णिमा की चाँदनी में क्या दिखता है जाते बुद्ध पीछे से आती ��वाज़ फिर नहीं आती ठिठक जाती क्या छोड़ आए नाथ क्या छूट गया नाथ Unknown
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बड़े बड़ाई ना करै, बड़ो न बोलै बोल रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल...!! ~ रहीम
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खैर, ख़ून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान॥ ~ रहीम
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