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नि:स्पृह

@nisprah

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प्रतीक्षा में..
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@nisprah
नि:स्पृह
5 days
अब मुझे हैरानी नहीं होती कि पुरुष कैसे आत्महत्या चुनते हैं, कि कैसे सब कुछ छोड़ हो जाते है संसार से विरक्त और सन्यासी. मैं अब जब भी कभी किसी शाम एकांत में खुद के आत्मावलोकन की कोशिश करता हूं, मैं समझता हूं उन सभी पुरुषों को जिन्होंने चुना वैराग्य. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
9 hours
मैं भले ही एक उत्तम पुरुष ना रहा होऊं पर मैंने अपने पुरुषार्थ से देह की तृप्ति नहीं पूर्ण की किसी स्त्री के साथ. मैंने किसी स्त्री को जिस संग भी मैं प्रेम में रहा विवश नहीं किया, न ही सहमति से न उत्तेजना से और न कामना वश उसके स्त्रीत्व का हनन नहीं किया. !!!.
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12 days
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@nisprah
नि:स्पृह
22 hours
कभी कभी मन करता है किसी से बात हो पर बातों में कोई बात ना हो. चाहता हूं कि कोई साथ हो पर फिर भी खुद के लिए एकांत हो, कोई हो जो सुन सके शब्द मुख से नहीं होंगे पर मेरे मौन के साथ उसका संवाद हो. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
1 day
मैं अब जानने लगा हूं कि मुझे मुक्त होने के लिए. मेरे, मेरा और मैं को मारना होगा. अतः मुझे ये स्वीकार करना ही पड़ेगा कि मेरी देह से लेकर मेरे चित्त तक कुछ भी मेरा नहीं, सब कुछ किराए का है और तब शायद मैं हो जाऊं मुक्त इस भोग विलास से. !!!.
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@nisprah
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2 days
ये नींद. देह थकी नहीं है शायद.
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@nisprah
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2 days
अच्छा है प्रभु ने दुःख सहने वाला बनाया, दुःख देने वाला नहीं. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
2 days
वासना मनुष्य की चिंताएं बढ़ाती हैं और कार्य के लिए प्रेरित करती हैं कार्य पूर्ण होने पर मन अशांत हो जाता है और अशांति मनुष्य को दुःख, पीड़ा और क्रोध से घेर देती हैं. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
2 days
एक समय बाद जब सारे प्रयासों को कर चुकोगे, हर जतन हर पहल तुम कर चूकोगे और हार जाओगे हर को पाने से, जीने से और आ पहुंचोगे मुखाग्नि के लिए चिता पर तब बस इतना भर समझ आयेगा कि बस समझ और समझा ना सके. बाकी सब ठीक रहा. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
3 days
उसका जाना जरूरी था शायद उसके ही लिए. मैं समेटे हूं उसकी याद को वो मुझे याद है हर एक क्षण का. उसके हिस्से का भी और मेरे साथ का भी. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
3 days
मैं देखता हूं कि लोग सिर्फ कहना चाहते हैं उन्हें चाहिए है कि कोई उन्हें सुने पर मैं चुनता हूं सुनना. मुझे पसंद है किसी को सुनना, उनको जानना और अक्सर उनकी कहानियों में मैं स्वयं को बुनता हूं. ऐसा कर मैं उनको जी पाता हूं, मुझे पसंद है उनका दुःख जीना. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
3 days
अक्सर सुबह हैरान होता हूं जीवित होने पर, मैं नहीं उठता मुझे उठाती हैं जिम्मेदारियां. कब तक सोते रहोगे, देह की थकान उतर चुकी है तो चलो रोज़ी के लिए. सच में नींद आती है मैं उठकर फिर सो जाता है पर एक-2 क्षण जैसे बरसों का भार लगता है, अचानक से उठकर निकल पड़ता है हर दिन की तरह. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
3 days
जब मनन करता हूं स्वयं का तो घृणा होती है मुझे, मुझसे. मैं सही व्यक्ति नहीं, मेरी सोच, विचार और मानसिकता बहुत दूषित है और जिन भी स्त्रियों संग मैं प्रेम में रहा और उन्हें जाने दिया, वो सब ईश्वर का प्रयोजन था उन्हें मुझसे बचाने का. मैं धन्यवाद् करता हूं प्रभु का. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
4 days
ये सुलगती स्याह रात अक्सर जब आसमान पर चांद की अनुपस्थिति होती है तो ये मुझे झुलसाती है. मैं तारों की टिमटिमा-हट से कुढ़ने लगता हूं मुझे गर्व था चांदनी पर लेकिन मैं कुछ भी नहीं रहा हूं अब मेरा गौरव रौंद दिया है रात ने और न जाने कब तक यूं ही इस तपिश में मृत्यु तक जलूंगा. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
4 days
मैं रोना चाहता हूं, आंसुओ से अपनी आंखो के कोरो को भर देना चाहता हूं. मैं सिर्फ अपना नहीं तुम्हारा भी रोना रो��ंगा, उन सभी का भी जिनके पास वो कंधा नहीं जिस पर उनके दुख का भर ठहर सके कि वो छाती नहीं जिसपे सूख सके उनके आंसुओ का नमक. मैं रोऊंगा गहन उन सब का. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
5 days
शायद. जो कभी तुम लौटेगी तो मुझे कहां पाओगी?मैं वो रहा ही नहीं जैसा तुमने छोड़ा था, मैं अब खुद से भी भागता हूं पता नहीं किस ओर किस दौड़ में बिना किसी रस्ते बिन सोचे बस दूर भाग रहा हूं सबसे,तो तुम्हें कहीं मिल भी जाऊं तो शायद मैं ना मिल पाऊंगा तुम्हें. तुम उस आस में मत लौटना. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
6 days
पहले सोचता था. अभी कुछ महीनों पहले तक कि एक आखिरी बार तो मिलना चाहिए है कि तुम्हारी हथेलियों पर अपनी अपनी रेखाएं उकेर दूं, तुमसे आलिंगन कर तुममें अपना रुदन उड़ेल दूं पर अब सोचता हूं क्यों?. वो जो चला गया तो उसको सोचना भी मेरे आत्मसम्मान और प्रेम के लिए लज्जा का विषय है. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
7 days
मुझे नींद तो आ जाती है पर सुकून से सोए हुए जमाना हुआ. वो गर्म बाहों का विस्तार चाहिए जिसमें समस्त चिंताओं को परे रख मैं एक नींद सो जाऊं. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
7 days
कोई एक तो हो यार. पर हो सिर्फ मेरा! अरे धत्त, भूल गया था अपने अभिशप्त भाग्य को. .
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@nisprah
नि:स्पृह
7 days
खुद को कभी कभी कितना बौना लगता हूं मैं कि दुःख का परचम सर के ऊपर लहरा रहा होता है और उसका स्तंभ जैसे मस्तिष्क को चीरता हुआ खड़ा है मुझमें. बस आंखे बचती हैं उसे देखने को और निराश होने को. !!!.
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@nisprah
नि:स्पृह
7 days
अकेले जीने का ढंग अकेले रहकर नहीं होता जबकि आप को बस अपने जीवन को दूसरों से दूर करना पड़ता है, अपनी इच्छाएं अपने कर्म अपने सुख और अपने दुख को अपने तक ही सीमित रखना होता है वास्तव में तब आप अकेलेपन को जीने लगते हैं. !!!.
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