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रंगमंच के पीछे का किरदार...!

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@nepathy_
नेपथ्य
3 months
लगभग 32 साल उम्र होने को है,इसमें से कई वर्ष चिंता और ओवरथींकिंग में ही गुज़र गए,समय का कोई अता पता नहीं चला,खैर!. मेहनत जारी है और मुकाम दूर कभी-कभी तो लगता है सबकुछ छोड़ कर कहीं दूर भाग जाऊं पंरतु खुद से भागना भी तो नामुमकिन है. !.
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RT @nepathy_: मैं लिखता हूंऔर बार-बार पढ़ता हूं उसे, खुद को भला बुरा कहता हूं,ताकि फिर से वो सब,गलती से भी ना दोहराऊं. !.
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@nepathy_
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मैं लिखता हूंऔर बार-बार पढ़ता हूं उसे, खुद को भला बुरा कहता हूं,ताकि फिर से वो सब,गलती से भी ना दोहराऊं. !.
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@nepathy_
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RT @nepathy_: इतिहास वो कर्म है जो बहुत कम लोग करते रहे है,ओर बाकी सारे हमारे जैसे लोग बिजली का बिल देखते रहे और मुफ्त में मुफ्त की पानी….
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@nepathy_
नेपथ्य
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इतिहास वो कर्म है जो बहुत कम लोग करते रहे है,ओर बाकी सारे हमारे जैसे लोग बिजली का बिल देखते रहे और मुफ्त में मुफ्त की पानी की बाल्टिया ढोते रहे. !.
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RT @nepathy_: मुझे लगता है मेरे अंदर एक कमी अवश्य है क्योंकि जिस हल्केपन से बाकि लोग कंधे हिला बातें कर लेते हैं,मैं कभी नहीं कर पाया हूं,उ….
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@nepathy_
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मुझे लगता है मेरे अंदर एक कमी अवश्य है क्योंकि जिस हल्केपन से बाकि लोग कंधे हिला बातें कर लेते हैं,मैं कभी नहीं कर पाया हूं,उनके देखने,बोलने और चलने में और मेरे देखने,बोलने और चलने में काफी अंतर है. !.
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RT @nepathy_: भावनाओं और सम्वेदनाओं की भी अपनी ही एक जटिल दुनिया है एक ही इंसान पे कभी गुस्सा आता है तो कभी दया आती है. !.
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@nepathy_
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भावनाओं और सम्वेदनाओं की भी अपनी ही एक जटिल दुनिया है एक ही इंसान पे कभी गुस्सा आता है तो कभी दया आती है. !.
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नेपथ्य
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RT @nepathy_: कभी-कभी कोई बेवजह की कोई बात एक बार ज़ेहन में आ गयी तो वहीँ अटकी रह जाती है,जब तक उसे किसी से कह न दो,लिख न दो या कर न दो वो….
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@nepathy_
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कभी-कभी कोई बेवजह की कोई बात एक बार ज़ेहन में आ गयी तो वहीँ अटकी रह जाती है,जब तक उसे किसी से कह न दो,लिख न दो या कर न दो वो वहीं अटकी रहती है,जैसे हम किसी चीज को कहीं छिपा के रख देते हैं उसे भुलाने के लिए पर भूल नहीं पाते. !.
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RT @nepathy_: कई बार हमे परेशानिया पूर्ण रूप से विक्षिप्त बना जाती है ना जाने क्यो हम स्वयं को इतना असहाय मसहूस करते है,हम समझते है पर परं….
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@nepathy_
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कई बार हमे परेशानिया पूर्ण रूप से विक्षिप्त बना जाती है ना जाने क्यो हम स्वयं को इतना असहाय मसहूस करते है,हम समझते है पर परंतु कुछ कर नही पाते ओर यही हमे अंदर ही अंदर तीव्र रूप से खाये जाती है और हम धीरे-धीरे चिड़चिड़ेपन का शिकार हुए जाते है. !.
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RT @nepathy_: एक वक्त तक ही रिश्तों को संभालने की कोशिश की जानी चाहिए,क्योंकि रोकने की चाह में हम खुद को उनकी नज़रों में गिरा लेते हैं,बाद….
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@nepathy_
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एक वक्त तक ही रिश्तों को संभालने की कोशिश की जानी चाहिए,क्योंकि रोकने की चाह में हम खुद को उनकी नज़रों में गिरा लेते हैं,बाद में सिवाय खुद से नफ़रत और अफ़सोस के कुछ नही बचता. !.
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RT @nepathy_: विवशता से बड़ी कोई सच्चाई नहीं,हर कोई विवश है,हर पल विवश है,एक पल के लिए आदमी सब कुछ त्याग सकता है पर विवशता को नहीं,उदाहरण….
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@nepathy_
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विवशता से बड़ी कोई सच्चाई नहीं,हर कोई विवश है,हर पल विवश है,एक पल के लिए आदमी सब कुछ त्याग सकता है पर विवशता को नहीं,उदाहरण की आवश्यकता नहीं,आप स्वयं उदाहरण हैं,जीवन- मरण के बाद ये सबसे बड़ा सत्य है, इसे झुठलाने वाले अब नहीं रहे,जो बच गए,सब ढोंगी हैं. !.
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RT @nepathy_: इसको जरूरत से ज्यादा मासूमियत भरा मन ही कहा जायेगा कि पाप और पुण्य के इस मायाजाल में पाप करना तो बहुत दूर की बात पाप करने का….
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@nepathy_
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इसको जरूरत से ज्यादा मासूमियत भरा मन ही कहा जायेगा कि पाप और पुण्य के इस मायाजाल में पाप करना तो बहुत दूर की बात पाप करने का खयाल भी मन में कभी आ जाए तो मन कुछ समय के लिए अपराधबोध में चला जाता है. !.
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RT @nepathy_: जैसे गर्म तवे पे पड़ के पानी की बूंदे भाप बनके अपना अस्तित्व बदल लेती है वैसे ही शराब से मेरे जेहन में दबी धुंधली सी यादे भी….
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@nepathy_
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जैसे गर्म तवे पे पड़ के पानी की बूंदे भाप बनके अपना अस्तित्व बदल लेती है वैसे ही शराब से मेरे जेहन में दबी धुंधली सी यादे भी उभर आती है,दिक्कत सिर्फ इतनी होती है कि जितनी जल्द वो आती है उसी गति से वो चली भी जाति है कुछ भी याद नही रहता और हम खो जाते है. !.
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