तुम्हारा सजना-सँवारना, आँखों में काजल लगाना कभी मुझको ना भाया,
तुम अक्सर इसी बात से रूठती,
मैं हँसता, तुमको बाजुओं से अपनी तरफ खिंच आँखों में आँखे डालता औऱ कहता
"तुम जब सँवरती हो ना, मुझे पराई लगने लगती हो, तुम मुझे ऐसी ही पसंद हो, बिखरे बाल, बिना काजल के समंदर सी आँखों वाली"