हरिशंकर परसाई Profile
हरिशंकर परसाई

@harish_parsai

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Unfiltered opinions | Politics | Philosophy | Sarcasm | A little poetry, a lot of truth | Writing like Parsai, but it’s all mine.

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@harish_parsai
हरिशंकर परसाई
7 months
नाम:सत्यव्रत(रमाकांत का दोस्त) शौक: लड़कियों को DM में गिफ्ट का झांसा देना(खुद के रात के खाने का पता नहीं) काम: नौकरी और भविष्य बताने के बहाने प्राइवेट डीटेल्स लूटना स्पेशल स्किल:भरोसा दिलाएगा कि आपको लगेगा यह भगवान का दूत है,और बाद में भगवान से ही दुआ करनी पड़ेगी कि पीछा छूटे
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हरिशंकर परसाई
2 hours
वही पवित्र ज़मीन हैं जहाँ करुणा और क्षमा के बीज अब भी अंकुरित हो रहे हैं। और जब भी किसी को सच्ची मदद, सहानुभूति या बिना शर्त प्यार चाहिए होता है, तो वह इन्हीं नाजुक दिलों को ढूँढ़ता है, भले ही बाद में ओवर सेंसिटिव कहकर किनारा कर ले।
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हरिशंकर परसाई
2 hours
किसी अपने के ताने से चुपचाप टूट जाने वाले, या किसी अनजान की दुखभरी पोस्ट पढ़कर आँखें नम कर लेने वाले कोमल दिलों को दुनिया भले ही भोला या कमज़ोर कहें, पर सच्चाई ये है कि यही वो दिल हैं जो अब भी दिल बने हुए हैं।यही वे आईना हैं जो दूसरों के दर्द को अपनी सतह पर उतार रहे हैं।
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हरिशंकर परसाई
15 hours
सचिव जी लड़की से—"ये सब नाचना वाचना छोड़ क्यों नहीं देती!" वो भी पूछ लेती है"आप क्या करते हैं?" "मैं... पास में ही एक गांव है फुलेरा,उधर पंचायत सचिव हूँ" "आपको पसंद है आपका काम?" "नहीं पसंद है इसलिए MBA की तैयारी भी कर रहा हूँ" "मतलब आप भी एक तरह से नाच ही न रहे हैं सचिव जी"
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हरिशंकर परसाई
16 hours
25 अक्टूबर, साहिर लुधियानव�� की पुण्यतिथि पर, हम एक ऐसे शायर को श्रद्धांजलि देते हैं, जिसने दुनिया से बहुत कुछ माँगा नहीं, पर उसे इतना कुछ दे गया कि सदियों तक उसकी आवाज़ ज़िंदा रहेगी। उनकी आवाज़ आज भी गुनगुना रही है, उन सभी के लिए जो तन्हा हैं, पर हार नहीं माने हैं।
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2 days
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2 days
रात को सब अपने घर पहुंचे, रघुबीर भी अपने कमरे में बैठा था।दीवार पर परछाईं हिल रही थी।वह अपने साथ हुआ खौफ़नाक मंजर को याद कर रहा था। तभी, उसके दरवाज़े के बाहर एक धीमी, रेंगती हुई फुसफुसाहट आई, जो हवा से नहीं, बल्कि ज़मीन के नीचे से आ रही थी: "तुम इतने बड़े क्यों हो, रघुबीर?"
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2 days
वे पांचों गांव की तरफ भागे, वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे उन्हें पता था कि उन्होंने सिर्फ़ कमल को नहीं खोया, बल्कि उन्होंने बरगद के जीते-जागते डर को अपनी आँखों से देखा लिया है, जो अब ताउम्र उनके साथ रहने वाला है। पांचों ने तय किया कि ये सब अब सुबह ही गांव वालों को बताया जाए।
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2 days
बरगद शांत हो गया, जैसे उसने अभी-अभी अपना निवाला निगला हो। चार अन्य गांव वाले घबराकर वहां से भागने के लिए कह रहे थे पर रघुबीर बीर पेड़ को घूर रहा था बरगद की एक और जटा, अब थोड़ी और नीचे, एक और रेशमी लाल धागे के साथ लटक रही थी। और इस बार, ख़ुशबू और भी मीठी थी।
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2 days
रघुबीर सबसे पहले हिला। वह चिल्लाया, "कमल!" और एक क़दम आगे बढ़ा, लेकिन ठीक उसी पल बरगद की जटाओं के बीच से टूटने की आवाज़ आई, और एक छोटी सी टूटी हुई चूड़ी ज़मीन पर गिरी। उस भयावह दृश्य को देखकर, रघुबीर तुरंत पीछे हट गया, पेड़ पर एक लाल धागा और आ गया था।
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हरिशंकर परसाई
2 days
इससे पहले कि कोई प्रतिक्रिया दे पाता, एक अदृश्य, ज़ोरदार झटके के साथ कमल को खींचा गया। यह इतना तेज़ था कि उसे बचने का कोई मौक़ा नहीं मिला। उसने एक अंतिम, भयानक चीख़ मारी एक ऐसी चीख़ जो इंसान के गले से नहीं, बल्कि तोड़े जा रहे मांस और हड्डियों से निकली लगती थी।
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2 days
सरपंच रघुबीर ने तुरंत समझा कि यह कोई इंसान नहीं बोल रहा। "कमल! पीछे हट!"—उसने चीख़कर कहा, लेकिन उसकी आवाज़ उसके ही गले में घुटकर रह गई, वो आगे बढ़कर कमल के पास जाना चाहता था मगर उसके पैर मानो वहीं जम गए, वो आगे नहीं बढ़ पाया, रघुबीर और बाकी चार ग्रामीण सदमे में जम चुके थे।
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हरिशंकर परसाई
2 days
उनमें से एक 26 वर्षीय नौजवान कमल, हिम्मत करके जटाओं के करीब गया। उसने टॉर्च ऊपर उठाई। कमल जैसे ही बरगद के तने के पास बनी मानव-आकार की गांठ की तरफ पहुंचा, वहाँ से वह भयानक, धीमी फुसफुसाहट आई: "तुम इतने बड़े क्यों हो कमल? अंदर आ जाओ, यहाँ बड़ा मज़ा है..."
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हरिशंकर परसाई
2 days
36 वर्षीय रघुवीर शुक्ला जोकि गांव के सरपंच हैं , ने कुछ नौजवानों के साथ रात में मशाल लेकर पेड़ के पास जाने का फ़ैसला किया। जैसे ही वे पहुँचे, वह अजीब, मीठी, डरावनी ख़ुशबू बहुत तेज़ हो गई। रघुबीर को लगा जैसे बरगद की हर पत्ती उन्हें घूर रही हो।
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हरिशंकर परसाई
2 days
पिछले कुछ हफ़्तों से गाँव में एक अजीब सी बेचैनी थी, गांव के बच्चे खेल-खेल में गायब हो रहे थे। पहले लगा कि वे भटक गए होंगे, लेकिन फिर एक दिन, कैलाश ने देखा कि बरगद की सबसे ऊँची और सबसे मोटी जटा से, कई रेशमी लाल धागे नीचे लटक रहे थे, बच्चा गायब होता, धागा बढ़ जाता।
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हरिशंकर परसाई
2 days
बरगद का तना इतना मोटा था कि लगता था जैसे वह ज़मीन से नहीं, बल्कि सीधे पाताल से निकला हो। रात के समय, जब गाँव के रास्ते सुनसान हो जाते थे, बीजू के बरगद से एक अजीब सी ख़ुशबू आती थी – सड़ी हुई पत्तियों की नहीं, बल्कि गुड़, गुलाब और मिट्टी के तेल की मिली-जुली ख़ुशबू।
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हरिशंकर परसाई
2 days
रोहिणी नाम का एक गांव था, उसकी पहचान थी गाँव के बीचों-बीच खड़ा सदियों पुराना बरगद का पेड़।लोग उसे 'बीजू का बरगद' कहते थे, क्योंकि कहते हैं कि बरसों पहले बीजू नाम के एक 12 साल के बच्चे ने खेल-खेल में ख़ुद को उसकी विशाल जटाओं में छिपा लिया था, और फिर कभी नहीं निकला।
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हरिशंकर परसाई
3 days
धैर्य किसी लक्ष्य को पाने का गुण नहीं, बल्कि स्वयं एक लक्ष्य है।इसलिए रुकिए मत,थकिए मत— याद रखिए, पौधा एक दिन में पेड़ नहीं बनता, विश्वास एक पल में नहीं गढ़ता,सफलता भी किसी एक दिन की घटना नहीं होती, और स्थायी प्रेम धीरे-धीरे दिल में जगह बनाता है।धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
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हरिशंकर परसाई
3 days
शाम ही से बुझा सा रहता है, दिल हुआ है चिराग़ मुफ़लिस का। ~~मीर तकी मीर ❤️
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हरिशंकर परसाई
3 days
एक प्रेमी जोड़ा एक टेबल पर बैठा है।वे प्यार भरी बातें कर रहे हैं, पर उनके संवाद खोखले हैं।नायक जानता है कि उसकी प्रेमिका झूठ बोल रही है,और प्रेमिका जानती है कि नायक जानता है। वे इसे स्वीकार नहीं करते।वे चाय के साथ झूठ भी पी रहे हैं प्रेम की सच्चाई अब इस झूठ को बनाए रखने में है।
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@harish_parsai
हरिशंकर परसाई
3 days
यूं तो निस्वार्थ प्रेम को परखने के लिए किसी कसौटी की जरूरत नहीं, पर समाज में कई बार प्रेम की शुद्ध भावना को जीवित और मान्य रखने के लिए रस्मों की जरूरत पड़ती है, यह मुहर प्रेम को सामाजिक वैधता प्रदान करती है, ऐसे ही एक सामाजिक अनुबंध भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाएं।
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