संस्कार बोलो या परवरिश, ना हमें गाली देना पसंद होता हें ना सुनना । लेकिन जब हम बिस्तर मे होते हैं, सभी संस्कार और मुखौटा उतर जाता हैं। जिस गाली से गुस्सा आता था वही जिस्म को उत्तेजित करने लगता हैं। और उसी चरम आनंद बहकर हम खुद गाली देने लगते है।
गोली लगने पर जितना दर्द होता होगा, उतना ही दर्द पीछे ठुकवाने में होता है! थोड़ा घुसते ही जो चीख कर औरतें बेड़ पर छटपटाती हैं, उस टाइम के दर्द का अंदाजा कोई मर्द नहीं लगा सकता! जो औरत तुम्हारा घोड़ा पिछवाड़े में सह लेती है, सोचो वो तुमसे कितना प्यार करती है!
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