बहुत बहुत समय बाद घर की छत पर आना हुआ. अब हमारी छत से पूरा शहर नहीं दिखता.
झांकने पर सामने वाली खिड़की से पिंक कवर में ढका tv नहीं दिखता.
मेरे बचपन के दोस्त भी नहीं हैं.
बोतल से टेक ऑफ़ करता रॉकेट भी नहीं है.
डाँटने वाले दादा जी कब से नहीं है. पर मैं हूँ, दिवाली है. 🪔