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World's largest archive of Urdu poetry and literature. Celebrating the language of love. Organiser of @JashneRekhta . #rekhta #jashnerekhta

India
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4 years
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते #RahatIndori
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4 years
"बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया ख़ालिद शरीफ़" #IrrfanKhan #RestInPeace
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4 years
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है ~Faiz Ahmad #Faiz
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4 years
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है ~ मुनव्वर राना #MothersDay
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3 years
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत ~बशीर बद्र RT if you agree.
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4 years
"वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया लिबास पहने रहा और बदन उतार गया ~ हसीब सोज़" #SushantSinghRajput #RIPSSR
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4 years
#विश्व_हिंदी_दिवस ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिंदी माँ का जाया हूँ ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूँ मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बाँ वालों मैं हिंदी माँ का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूँ @DrKumarVishwas
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4 years
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं ~ जौन एलिया
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5 years
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है ~मुनव्वर राना
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4 years
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा ~ अहमद फ़राज़
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5 years
कहानी ख़त्म हुई और ऐसे ख़त्म हुई कि लोग रोने लगे तालियां बजाते हुए #INDvsNZ #INDvsNZL #CWC19
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4 years
मुझ को छाँव में रखा और ख़ुद भी वो जलता रहा मैं ने देखा इक फ़रिश्ता बाप की परछाईं में ~ अज्ञात
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4 years
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता एक ही शख़्स था जहान में क्या ~ जौन एलिया
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4 years
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो #RahatIndori
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4 years
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया ~ बशीर बद्र
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4 years
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा @rahatindori
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4 years
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते ~ ज़फ़र इक़बाल
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4 years
#Dhoni #MSDhoni 'मोहब्बत करने वाले कम न होंगे तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे ~ हफ���ीज़ होशियारपुरी'
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4 years
#TeachersDay जिन के किरदार से आती हो सदाक़त (truth) की महक उन की तदरीस(Teaching) से पत्थर भी पिघल सकते हैं
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4 years
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है ~ वसीम बरेलवी
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4 years
जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है ~ जौन एलिया
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3 years
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है ~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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3 years
कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है ~ शकील बदायुनी
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3 years
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते ~ उम्मीद फ़ाज़ली
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3 years
मूड हो जैसा, वैसा मंज़र होता है मौसम तो इंसान के अंदर होता है ~ अज्ञात
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4 years
सबकी पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए ~ राहत इंदौरी
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4 years
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा ~ राहत इंदौरी
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4 years
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते ~ मुनीर नियाज़ी
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4 years
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो ये सब तुम्हारे ही घर हैं किसी भी घर में रहो ~ राहत इंदौरी
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4 years
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का जो पिछली रात से याद आ रहा है ~ नासिर काज़मी
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धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो ~ निदा फ़ाज़ली
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मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी ~ बशीर बद्र
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3 years
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है ~ वसीम बरेलवी
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4 years
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ~ अहमद फ़राज़
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3 years
नए किरदार आते जा रहे हैं मगर नाटक पुराना चल रहा है ~ राहत इंदौरी
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4 years
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे ~ जौन एलिया
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3 years
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा ~वसीम बरेलवी
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4 years
"एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा परवीन शाकिर" #IrrfanKhan #RestInPeace
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4 years
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा ~शौक़ बहराइची
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4 years
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया ~ जौन एलिया
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4 years
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया ~ साहिर लुधियानवी
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4 years
'जनाज़े पर मेरे लिख देना यारो मोहब्बत करने वाला जा रहा है' अहद-ए-हाज़िर के मशहूर-ओ-मारुफ़ शायर राहत इंदौरी के अचानक इन्तिक़ाल से हम सब ग़मज़दा हैं। राहत साहब हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों और दुआओं में जिंदा रहेंगे... #RIPRahatIndori #RahatIndori
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3 years
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे ~ वसीम बरेलवी
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4 years
"ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते ~साक़िब लखनवी" #RishiKapoor #RIPLegend
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3 years
साल के आखिरी दिन उसने दिया वक्त हमें अब तो ये साल कई साल नहीं गुजरेगा ~ शारिक़ कैफ़ी
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नींद क्या है ज़रा सी देर की मौत मौत क्या क्या है तमाम उम्र की नींद ~ जगन्नाथ आज़ाद
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4 years
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं ~ जौन एलिया
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4 years
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है ~ शहरयार #BirthAnniversary
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3 years
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते ~ उम्मीद फ़ाज़ली
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4 years
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा @MunawwarRana #RakshaBandhan2020
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साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी ये ठहरे हुए लोग बग़ावत नहीं करते ~ खुर्शीद अकबर
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झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा ~ वसीम बरेलवी
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आग का क्या है पल दो पल में लगती है बुझते बुझते एक ज़माना लगता है ~ कैफ़ भोपाली
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जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है ~ जौन एलिया
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उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया ~ नज़ीर बनारसी
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दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए ~ निदा फ़ाज़ली
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तेरे आने की क्या उमीद मगर कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं ~ फ़िराक़ गोरखपुरी
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4 years
#ThursdayThoughts वक़्त अच्छा ज़रूर आता है पर कभी वक़्त पर नहीं आता ~ परवेज़ साहिर
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4 years
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे ~ वसीम बरेलवी
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3 years
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ~ मिर्ज़ा ग़ालिब
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हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी जिस को भी देखना हो कई बार देखना ~ निदा फ़ाज़ली
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सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते ~ बिस्मिल सईदी
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मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी ~ बशीर बद्र
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अंदर के हादसों पे किसी की नज़र नहीं हम मर चुके हैं और हमें इस की ख़बर नहीं ~ फ़रहत एहसास
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4 years
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते ~ ज़फ़र इक़बाल
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जो गुज़ारी न जा सकी हम से हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है ~ जौन एलिया
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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे ~ वसीम बरेलवी
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3 years
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं दिल हमेशा उदास रहता है ~ बशीर बद्र
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आग का क्या है पल दो पल में लगती है बुझते बुझते एक ज़माना लगता है ~कैफ़ भोपाली
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आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई #Gulzar
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एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो #RahatIndori
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सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते ~ मुनव्वर राना
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3 years
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता ~ चराग़ हसन हसरत
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तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया ~ बहादुर शाह ज़फ़र
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ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं ~जिगर मुरादाबादी #sushantsinghrajpoot
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गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह ~ बासिर सुल्तान काज़मी
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तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं ~ दुष्यंत कुमार
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अब के मिलने की शर्त ये होगी दोनों घड़ियाँ उतार फेंकेंगे ~ नासिर अमरोहवी
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फिर कर्बला के बाद दिखाई नहीं दिया ऐसा कोई भी शख़्स कि प्यासा कहें जिसे @MunawwarRana
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रात भर तारीफ़ मैंने की तुम्हारे रूप की चाँद इतना जल गया सुनकर कि सूरज हो गया। ~ चन्दन राय
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हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में ~ बशीर बद्र
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नए किरदार आते जा रहे हैं मगर नाटक पुराना चल रहा है ~राहत इंदौरी @rahatindori
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दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता ~ वसीम ��रेलवी #FridayFeeling
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हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं ~ हस्तीमल हस्ती
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ये बहस छोड़ कि कितनी हसीन है दुनिया, तू ये बता कि तेरा दिल कहीं लगा कि नहीं ~ विजय शर्मा अर्श
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तू नया है तो दिखा सुब्ह नई शाम नई वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई ~ फ़ैज़ लुधियानवी
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फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था ~ अदीम हाशमी
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#IndependenceDay #15August 'दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी ~ लाल चन्द फ़लक'
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हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता ~ अकबर इलाहाबादी
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शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं ~ अज्ञात
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अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए ~ उबैदुल्लाह अलीम
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ ~ अकबर इलाहाबादी
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गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा ~ अहमद फ़राज़
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तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे ~ क़ैसर-उल जाफ़री
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हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में ~ बशीर बद्र
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कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं —अली सरमद #WednesdayThoughts
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झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े ~ इक़बाल अज़ीम
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ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं ~ कृष्ण बिहारी नूर
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#TuesdayThoughts मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ~ दुष्यंत कुमार
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ~ मिर्ज़ा ग़ालिब
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