Rajesh Reddy
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Joined August 2014
इक ए़तिबार था कि जो टूटा नहीं कभी इक इंतिज़ार था जो मैं करता चला गया - राजेश रेड्डी اک اعتبار تھا کہ جو ٹو ٹا نہیں کبھی اک انتظار تھا جو میں کرتا چلا گیا راجیش ریڈی -
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The city was broke—but not broken. Drop Dead City, the 2025 documentary about NYC’s 1975 fiscal crisis, is out now. Don’t miss this smart, gripping and unexpectedly poignant story of urban survival, now streaming on all major platforms!
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करने बैठेंगे जब ह़िसाब-किताब कुछ ख़ुदा की तरफ़ ही निकलेगा - राजेश रेड्डी
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आँखें भी कब जान सकी हैं कौन सा आँसू किस ग़म का है - राजेश रेड्डी
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10 gallons a day. Zero infrastructure. Meet the WaterCube 10: the future of off-grid water.
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ग़ज़ल हम जी रहे हैं जान! तुम्हारे बग़ैर भी हर दिन गुज़र रहा है गुज़ारे बग़ैर भी आसान होगा मरना समझ लें जो हम ये बात दुनिया यूँ ही रहेगी हमारे बग़ैर भी जीते बग़ैर जीतने वालों के दौर में कुछ लोग हार जाते हैं हारे बग़ैर भी - राजेश रेड्डी ( पूरी ग़ज़ल Facebook पर उपलब्ध )
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मैं तो होने में लगा रहता हूँ होता रहता है न होना मेरा - राजेश रेड्डी
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वो आफ़ताब लाने का देकर हमें फ़रेब हमसे हमारी रात के जुगनू भी ले गया - राजेश रेड्डी
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AI won’t transform drug discovery until it escapes the screen. Meaningful progress will require models to be integrated into the physical execution of experiments. At @medra_ai, we’ve raised a $52M Series A to build the first Physical AI Scientist that enables lab-in-the-loop
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आख़िरी ख़्वाहिश जो पूछी वक़्त ने पहली ख़्वाहिश मुस्कुरा कर रह गई - राजेश रेड्डी
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धोखा है इक फ़रेब है मंज़िल का हर ख़याल सच पूछिए तो सारा सफ़र वापसी का है - राजेश रेड्डी
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जिस दिन जिस्म की गुल्लक फूटी ग़म के कितने ___ सिक्के निकले - राजेश रेड्डी
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कल रात आसमाँ पे सितारों का जश्न था सूरज की आँख आज ज़रा देर से खुली - राजेश रेड्डी
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ग़ज़ल मिरी आँखों पे मंज़र कब खुलेगा जो दर वा* है वो मुझ पर कब खुलेगा *खुला रहेगा कब तलक तू आस्तीं में तिरा याराना खुल कर कब खुलेगा तू जिस दर से निकल पड़ता है बाहर वही दर तेरे अंदर कब खुलेगा सफ़र में चार दिन तो हो गए हैं ख़ुदा जाने ये बिस्तर कब खुलेगा - राजेश रेड्डी
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मैंने तो बाद में तोड़ा था उसे आईना मुझपे हंसा था पहले - राजेश रेड्डी
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Jefferson distrusted judges. He spent his post-presidential years railing against John Marshall's Supreme Court, warning that the judiciary was becoming "a subtle corps of sappers and miners constantly working under ground to undermine the foundations of our confederated fabric."
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ग़ज़ल जाने कितनी उड़ान बाक़ी है इस परिंदे में जान बाक़ी है जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं अब तो बस आसमान बाक़ी है अब वो दुनिया अजीब लगती है जिस में अम्न-ओ-अमान बाक़ी है इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा इक नया इम्तिहान बाक़ी है - राजेश रेड्डी
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ग़ज़ल बे-घरी का अपनी ये इज़हार कम कर दीजिए शे'र में ज़िक्र-ए-दर-ओ-दीवार कम कर दीजिए अपनी तन्हाई में इतना भी ख़लल अच्छा नहीं आप अपने-आपसे गुफ़्तार कम कर दीजिए दुश्मनों की ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी तादाद कम यारों की फ़ेहरिस्त में कुछ यार कम कर दीजिए - राजेश रेड्डी
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सब कहाँ दुनिया में हो पाए फ़क़ीर कुछ फ़क़त सुलतान हो कर रह गए - राजेश रेड्डी سب کہاں دنیا میں ہو پائے فقیر کچھ فقط سلطان ہو کر رہ گئے راجیش ریڈی
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