'जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है।अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियां न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे...'
[प्रेमचंद के फटे जूते (व्यंग्य): हरिशंकर परसाई]
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@astitwankur
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@IAmSudhirMishra
A quote from one of his books- “आत्मविश्वास धन का होता है, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बड़ा आत्मविश्वास नासमझी का होता है” 😀. Sudhir Ji, Srilal Shukla’s Rag Darbari is another great satire.
@IAmSudhirMishra
हिन्दी साहित्य में व्यंग्य को विधा के रूप में स्थापित करने वाले हरिशंकर परसाई ही थे ।शरद जोशी जी ने उस काम को आगे बढ़ाया । परसाई और शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य के शीर्ष लेखक हैं। मप्र साहित्य अकादमी का पहला शरद जोशी सम्मान ,परसाई जी ने सहर्ष स्वीकार किया था । जबकि लोगों को आशंका थी ।