Dr.Rakesh Pathak डॉ. राकेश पाठक راکیش
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Chief Editor कर्मवीर https://t.co/Po5QW6pO6J पूर्व संपादक नवभारत,नईदुनिया,नवप्रभात,प्रदेश टुडे. पूर्व प्रधान संपादक datelineindia,पूर्व एडिटर इन चीफ़ DNN चैनल।
Gwalior, India
Joined November 2015
♦️सॉरी सर, संघ तो स्वाधीनता संग्राम तक में शामिल नहीं था.! 🔸 'भारत छोड़ो आंदोलन' के समय अंग्रेजों के साथ था RSS 🔸संघ ने न संविधान स्वीकार किया था और न तिरंगा। 🔸आज़ाद भारत में देश और समाज विरोधी गतिविधियों के कारण तीन बार लग चुका है प्रतिबंध। 🔸फिर भी आप लाल किले से कसीदे
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▪️बंगाल की 'बूढ़ी गांधी' शहीद मातंगिनी हाजरा 'भारत छोड़ो आंदोलन' में अंग्रेजों की गोलियां खाकर भी नहीं छोड़ा तिरंगा और वंदे मातरम्। #प्रसंगवश: ▪️ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल नहीं हुआ था संघ। ▪️ श्यामप्रसाद मुखर्जी अंग्रेजों को चिट्ठी लिख कर इस आंदोलन को कुचलने के उपाय बता रहे
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सर, रिफ्रेंस ज़रूर होगा लेकिन इतिहास की किताबों में नहीं बल्कि उनके व्हाट्सएप विष'विद्यालय की किताबों में।
During the Vande Mataram debate today PM Modi claimed that Mahatma Gandhi saw it as 'national anthem' since 1905. But Gandhi was in South Africa, he arrives in India in 1915. Is there any reference which I seem to have missed?
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▪️अगर आज़ादी के बाद दस बीस साल संसद में बताया गया होता कि सं घ ने आज़ादी की लड़ाई में गद्दारी की थी तो आज इनका नामो निशान नहीं होता..! 🔸 फिर भी अगर कुछ बच जाते तो उनकी अगली सात पीढ़ियों के माथे पर 'ग़द्दार' लिखा मिलता। ▪️ धन्यवाद मो दी जी, आपने एक बार फिर ये साबित करने का
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ऐसे चुटकुले आप अपने व्हाट्सएप ग्रुप/ आईटी सेल में ही आगे भेजिए महोदय। यहां इसका कोई कद्रदान नहीं है। आभार।
@DrRakeshPathak7 गांधीजी भी संघीय या महासभाईय थे क्या? अंग्रेज उनको भी अच्छी खासी पेंशन देते थे हर महीने।
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आज प्रियंका गांधी ने संसद में 'एप्सटीन फाइल्स' का सवाल उठाया। इस मुद्दे पर कुछ दिन पहले हमने वरिष्ठ पत्रकार @pkray11 के साथ लंबी चर्चा की थी। लिंक ये रही... https://t.co/qZ6sRlj3vp
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पियूष जी, आपको आपके आईटी सेल ने बताया नहीं कि उसी मुस्लिम के साथ आपके वैचारिक पुरखे प्रांतीय सरकारों में शामिल रहे। आपको आपके व्हाट्सएप विष'विद्यालय ने आपको बताया नहीं कि भारत छोड़ो आंदोलन के समय आपके प्रो श्यामप्रसाद मुखर्जी बंगाल की सरकार में मंत्री बने बैठे थे और आंदोलन को
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▪️'वंदे मातरम्' गाने पर अंग्रेज कोड़े मारते थे..! 🔸 स्वामी विवेकानंद के भाई भूपेंद्रनाथ दत्त ने वंदे मातरम् गाने पर चालीस कोड़ों की सजा पाई थी। ▪️अंग्रेजों के पिट्ठुओं ने डर के मारे कभी नहीं गाया वंदे मातरम्। #वंदे_मातरम् #VandeMataram150
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जिन तीन प्रांतों में हिंदू महासभा लीग के साथ सरकार में शामिल थी उनमें से एक प्रांत सिंध में पृथक देश पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित हुआ था। सिर्फ औपचारिकता के लिए महासभा के मंत्री,विधायक उस समय सदन से बाहर गए लेकिन सरकार में बने रहे वंदे मातरम् को राष्ट्र गीत के रूप में मान्यता
मुस्लिम लीग द्वारा वंदे मातरम के विरोध के बाद और क्या क्या हुआ? बात 1937 की है। ब्रिटिश इंडिया में चुनाव हुए। कुल 11 राज्य थे। इनमें कांग्रेस ने 7 राज्यों में सरकार बनाई। मुस्लिम लीग ने एक राज्य भी नहीं जीता था। फिर मुस्लिम लीग को ताक़त किसने दी? 1937 के चुनाव के बाद, 1937
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अपने पितृ संगठन RSS का नाम कैसे ले सकते हैं..! देश अच्छी तरह जानता है कि मोदी जी के वैचारिक पुरखों और उनके पितृ संगठन का स्वतंत्रता संग्राम में रत्ती भर योगदान नहीं था। आपने हीनता बोध को छुपाने के लिए नेहरू और कांग्रेस के नाम की माला जपते हैं।
नरेंद्र मोदी किसी विषय पर बोलने के समय पंडित नेहरू और कांग्रेस का नाम कितनी बार लेते हैं 👇🏼 ⦁ ऑपरेशन सिंदूर- पंडित नेहरू का नाम 14 बार, कांग्रेस का नाम 50 बार ⦁ संविधान की 75वीं वर्षगांठ- पंडित नेहरू का नाम 10 बार, कांग्रेस का नाम 26 बार ⦁ 2022 में राष्ट्रपति अभिभाषण-
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🕳️ तब इस कुनबे ने 'वंदे मातरम्' को चिमटे से भी नहीं छुआ था आज छाती कूट रहे हैं। ▪️ जब 'वंदे मातरम्' राष्ट्रगीत बना तब नेहरू की कैबिनेट में प्रो श्यामप्रसाद मुखर्जी शामिल थे। 🔸 वंदे मातरम् गाने या नारा लगाने पर अंग्रेज कोड़े बरसाते थे इसलिए डर के मारे संघ,हिंदू महासभा ने कभी
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त्रिपाठी जी, आपके मातृ संगठन की पोल खुल जाएगी कि जब देश स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम् गा रहा था,नारे लगा रहा था तब आपके वैचारिक पुरखे झूठे मुंह भी वंदे मातरम् नहीं गाते थे। कि जब पूरा देश आज़ादी की लड़ाई में जुटा था तब आपके वैचारिक पुरखे अंग्रेजों के साथ खड़े थे। वैसे ये
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जी भाई लेकिन यह भी सौ टंच सच है कि स्वतंत्रता संग्राम में जब पूरा देश वंदे मातरम् गा रहा था तब RSS और हिन्दू महासभा के लोगों ने झूठे मुंह भी नहीं गाया। गाते भी कैसे उनके मालिक अंग्रेज लोग बुरा मान जाते ना..! और आप तो जानते ही हैं कि संघीयों और महासभाईयों को अंग्रेजों के डंडे से
वंदे मातरम् हर कसौटी पर सौ टंच खरा उतरता है। वंदे मातरम् के पहले दो पद तो ऐसे है कि जिन्हें भारत ही नहीं दुनिया का कोई भी राष्ट्र अपना राष्ट्रगीत घोषित कर सकता है।इस अर्थ में वंदे मातरम् विश्व गीत हैं। वंदे मातरम् में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे मुसलमान विरोधी या इस्लाम विरोधी कहा
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प्रिय संबित जी, आपको आपके व्हाट्सएप विष'विद्यालय में ये नहीं बताया गय��� कि... १) सरदार पटेल 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे और आजीवन कांग्रेसी रहे। 2) सरदार पटेल अपने जीवन की अंतिम सांस तक पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपना नेता मानते रहे। ३) नेताजी सुभाषचंद्र बोस और पंडित नेहरू
बाबा साहेब को नेहरू ने बार-बार अपमानित किया! और आज उनके द्वारा निर्मित संविधान को हाथ में लेकर नेहरू का परपोता सत्ता की कुर्सी हथियाने की कोशिश कर रहा है।
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सर, संबित पात्रा को उनके व्हाट्सएप विष विद्यालय में ये नहीं बताया गया कि... १) सरदार पटेल 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे और आजीवन कांग्रेसी रहे। 2) सरदार पटेल अपने जीवन की अंतिम सांस तक पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपना नेता मानते रहे। ३) नेताजी सुभाषचंद्र बोस और पंडित नेहरू अनन्य
It is the guilt of being away from the freedom struggle that compels you all to peddle lies about our freedom fighters. All those mentioned here had huge respect for each other, they had differences as they were thinking people. Don’t malign them on this count.
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आप जिन सज्जन (?) से 'राजधर्म' निभाने की आशा कर रहे हैं उन्होंने राजधर्म कभी नहीं निभाया। जब वे सूबे के मुखिया थे तब देश के मुखिया ने उनसे राजधर्म निभाने को कहा था तब इन सज्जन ने उन्हें भी असभ्यता से जवाब दे दिया था। अस्तु इन को 'धर्म' के नाम पर धंधा करना आता है, उसके बल पर
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बढ़िया खोज ख़बर रूबी जी।
अब आप "शिव सहगल" के बारे में जान लीजिए. ये शिव सहगल किसके पुत्र हो सकते हैं ये आप समझ चुके होंगे. #Shiv_Sehgal उत्तराखंड के देहरादून में रजिस्टर्ड ऑनलाइन/बेटिंग गेम के मालिक हैं. गेम का नाम है #IVAK_ENTERTAINMENT_GAMES_LLP शिव सहगल के अन्य पार्टनर्स में हैं आकाश खंडूजा और इवनिश
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गांधी के दक्षिण अफ्रीका से विदा होने पर जनरल स्मट्स ने कहा था कि आज एक संत दक्षिण अफ्रीका के तट से विदा हो गया।
गांधी का वह विराट शत्रु, जिसे उन्होंने चप्पलों से मारा।। बात जनरल स्मट्स की है। जॉन स्मट्स उस दौर के एक दुर्लभ व्यक्तित्व थे। केम्ब्रिज टॉपर, बोअर कमांडो, पॉलिटिशियन, ब्रिटिश साम्राज्य के कैबिनेट मंत्री, दार्शनिक, वकील, वैज्ञानिक और राजनेता। वे 20वीं सदी के पहले भाग के सबसे
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सही बात सर। सच्चाई यही है कि ख़ुद संघ परिवार कुछ दशक पहले तक सावरकर का नाम भी नहीं लेता था क्योंकि गांधी जी की हत्या के मामले में उन पर मुकदमा चला था। अदालत में पीछे की बैंच पर बैठे सावरकर की फोटो तब देश के मानस में ताजा थी। तब संघ चिमटे से भी सावरकर को नहीं छूता था। आज़ादी
@NayakRagini बात थोड़ी पुरानी है। मैं उस समय पत्रकारिता में आया ही था। 1985 के आसपास। हमने एक ख़बर संघ और भाजपा के विद्यार्थियों, शिक्षकों और राजनेताओं के बीच कि सावरकर कौन हैं? उस समय हमें 95 प्रतिशत ने जवाब दिया था कि या तो गावस्कर के पिता हैं या फिर उनके कोई रिश्तेदार! ये तो लेफ़्ट के
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