सामाजिक कुरीतियों की तरफ़ सत्ता, समाज और धर्म ने आंख मूंद ली हैं।
मैंने अपने पत्रकारिता काल में किसी सरपंच, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और धर्मगुरु को डायन प्रथा, नाता प्रथा और बाल विवाह जैसी बुराइयों के खिलाफ लड़ते-बोलते नहीं देखा। अब यह लड़ाई हमें खुद लड़नी होगीl