दर्शन | मनोविज्ञान | अध्यात्म | धर्म-संस्कृति | शुद्ध शाकाहार (वीगनिज़्म) | जलवायु परिवर्तन | प्रोफाइल प्रशांतअद्वैत संस्था द्वारा मात्र ब्रॉडकास्ट हेतु संचालित
एक कंपनी व एक क्रिकेटर ने दीवाली के बारे में टिप्पणी करी। शोर मचा।
जब सनातनियों को धर्म का ज्ञान ही नहीं, तो कोई भी छींटाकशी कर जाता है।
जब कोई राम की दीवाली पर कुतर्क करे, तो प्रतिवाद आप रामचरितमानस- योगवाशिष्ठ-रामगीता से ही कर पाएँगे।
धर्म के ज्ञान से ही धर्म का सम्मान होगा।
जानवर के लिए नेचर है – प्रकृति।
मनुष्य के लिए नेचर है – आत्मा।
तो मत बोल दिया करो,
“कामवासना तो नेचुरल है न!”
सांड कामुक हो गाय की ओर भागे,
ये नेचुरल है।
पर पुरुष भागे अगर स्त्री की ओर,
ये नेचुरल नहीं।
मनुष्य यदि सांड-सा व्यवहार करेगा,
तो बात प्राकृतिक नहीं,
पाशविक होगी।
संसार ऐसा नहीं है कि तुम्हें सत्य की ओर आसानी से जाने दे।
संसार में तो छोटी से छोटी चीज़ के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, और सत्य तो बहुत बड़ी चीज़ है।
सत्य, शांति, मुक्ति - यूँ ही नहीं मिलेंगे, महासंघर्ष करना पड़ेगा।
सत्य का स्मरण ही सत्य के लिए संघर्ष करने की शक्ति देता है।
हम कुछ भी कह लें कि
धर्म धोखा है, पाखंड है,
पर हमें भूलना नहीं होगा कि
भारत का जीवन धर्म ही है,
अध्यात्म ही है।
उसी की वजह से भारत
मिटने नहीं पाया है।
भारत दुनिया का सबसे पुराना
जीवित राष्ट्र इसीलिए है,
क्योंकि उस राष्ट्र के केंद्र में धर्म बैठा है।
ज़िन्दगी और गुरु, दोनों ही कष्ट देकर सिखाते हैं।
और कष्ट से जो हाय-हाय कर बिलबिलाने लगें, सीख उनके लिए नहीं।
ज़िन्दगी से नहीं सीखना, तो हम जीने से कतराने लगते हैं।
गुरु से नहीं सीखना, तो हम गुरु से मुँह बचाने लगते हैं।
सीखने और जीने के लिए जिगर चाहिए।
ज़िन्दगी ही तो गुरु है।
क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी वजह क्या?
चुप्पी।
सार्स, मर्स, बर्ड फ्लू, एबोला संक्रमणों की वजह क्या?
चुप्पी।
और अब कोविड-19
हिम्मत नहीं कि खुल कर बोल पाएँ वो एक वजह जो इन सब आपदाओं का कारण है:
माँसाहार।
कितनी महामारियाँ और महाविनाश चाहिए?
माँसाहार को कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे?
तुम्हारे साथ हो वही रहा है,
जो तुमने तय करा है।
जब तुम्हारी ज़िन्दगी की कहानी
तुम्हें ही लिखनी है,
तो कोई सुंदर कहानी लिखो न!
ऊपरवाला बुरी कहानी तो लिखता ही नहीं,
वो अच्छी कहानी भी नहीं लिखता!
कलम उसने तुम्हें ही दे दी है।
लिखो अब जो चाहो!
इंस्टाग्राम:
जैसे ऐसा हो नहीं सकता
कि तुम प्रदूषित हवा में साँस लो
और तुम्हारे फेफड़ों पर असर ना पड़े,
वैसे ही ऐसा हो नहीं सकता
कि तुम मैली-कुचैली वाणी सुनो,
और तुम्हारे मन पर असर ना पड़े।
असर पड़ेगा!