@Ahmed1Hilal
बिल्कुल सही बात है .... स्कूल - कालेजों के दिन पता ही नहीं चलता था कि ईद अपना त्यौहार नहीं है। बल्कि ज्यादा उत्साह रहा करता था ... सबेरे लिस्ट बन जाती थी कि फलाने टाईम पर साजिद के घर जाना है तो फलाने टाईम पर हामिद के घर ...और फिर रहमान के यहाँ
@Ahmed1Hilal
यह त्यौहार हिन्दू और मुस्लिम तो अपने अपने जगह पहले से ही थे परन्तु जो सामाजिक आदर एक दूसरे के लिए था वह कम हो गया और फिर ध्रुवीकरण और तेज होता चला गया। इसकी शुरुआत अब स्कूल कॉलेजो में है देखी जा सकती हैं जहां बच्चें अब बहुत ही बारीकी से धर्म एवं जाति के प्रति जागरूक हो गए हैं
@Ahmed1Hilal
दीवाली ईद के चक्कर में है! हम इतने बौद्धिक हो गए है रंग देखते ही भाव और विचार जान जाते है, कपड़ा देखते जान जाते हैं, सूरज और चांद देखते जान जाते है, घरों से आकर से जान जाते है, किताब से जान जाते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रतीकों के सहारे जी रहे है और मार रहे है।